Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 582
________________ ५, ६, ७४० ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५४९ तेयादववग्गणा तेयासरीरस्स गहणं पवत्तदि ॥ ७३६ ॥ तेजासरीरस्स तेयासरीरटें गहणं जत्तो पवत्तदि सा तेजावग्गणा त्ति भण्गदि । एदस्स णिग्णयमुत्तरसुत्तं भणदि । जाणि दव्वाणि घेतूण तेयासरीरत्ताए परिणामेदूण परिणमंति जीवा ताणि वन्वाणि तेजादव्ववग्गणा णाम ॥ ७३७ ॥ जाणि दव्वाणि घेत्तण पावितण तेजासरीरत्ताए तेजासरीरसरूवेण परिणामेदूण मिच्छादिपच्चएहि परिणमाविय परिणमंति संबंधं गच्छति जीवा ताणि दवाणि तेजा दववग्गणा णाम । तेजाववववग्गणाणमुवरिमगहणवववग्गणा णाम । ७३८ ॥ अगहणवव्ववग्गणा णाम का ॥ ७३९ ।। अगहणदववग्गणा तेजादवमविच्छिदा भासादव्वं ण पावेदि ताणं वन्वाणमंतरे अगहणवव्ववग्गणा णाम ॥ ७४० ।। सुगममेदं सुत्ततियं । तैजसद्रव्यवर्गणासे तैजसशरीरका ग्रहण होता है ॥ ७३६ ।। ' तेयासरीरस्स' अर्थात् तेजसशरीरके लिए ग्रहण जिससे होता है वह तैजसवर्गणा कही जाती है। अब इसका निर्णय करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं । जिन द्रव्योंको ग्रहणकर तैजसशरीररूपसे परिणमा कर जीव परिणमन करते हैं उन द्रव्योंकी तेजसद्रव्यवर्गणा संज्ञा है ।। ७३७ ॥ जिन द्रव्योंको ग्रहण कर अर्थात् प्राप्त कर तैजसशरीररूपसे 'परिणामेदूण ' अर्थात् मिथ्यात्व आदि कारणोंसे परिणमा कर जीव 'परिणमंति' अर्थात् सम्बन्धको प्राप्त होते हैं वे द्रव्य तैजसद्रव्यवर्गणा कहलाते हैं। तेजसद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर अग्रहणद्रव्यवर्गणा होती है । ७३८ ।। अग्रहणद्रव्यवर्गणा क्या है । ७३९ । अग्रहणद्रव्यवर्गणा तैजसद्रव्यवर्गणासे प्रारम्भ होकर भाषाद्रव्यको नहीं प्राप्त होती है, अतः इन दोनों द्रव्योंके मध्य में जो होती है उसकी अग्रहणद्रव्यवर्गणा संज्ञा है । ७४० ।। ये तीन सूत्र सुगम हैं। 0 का० प्रती ' पबत्तीदि' इति पाठ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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