Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 581
________________ ५४८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६. ७३३ किलक्खणेणे त्ति भणिदं होदि । अगहणवव्ववग्गणा आहारवव्वमधिच्छिदार तेयादव्ववग्गणं न पाववि ताणं दवाणमंतरे अगहणदव्ववग्गणा णाम ।। ७३३ ॥ आहारदनवमधिच्छिवा एदेणतिण्णं सरीराणमप्पाओग्गत्तं आहारदव्ववग्ग. णाए उक्कस्सवग्गणादो वि अगहणजहण्णवग्गणाए रूवाहियत्तं परविदं । तेयादववग्गणं ण पावदि एदेण तेजा-भास-मण-कम्माणमप्पाओग्गत्तं तेजाजहण्णवग्गणादो एदिस्से उक्कस्सवग्गणाए रूवणतं च परूविदं । ताणं दवाणमंतरे एदासि दोणं वग्गणाणं विच्चाले अगहणवववग्गणा णाम । एदेण द्विदपदेसपरूवणा कदा । अगहणदव्ववग्गणाणमुवरि तेयादव्ववग्गणा णाम ॥ ७३४ ॥ एदेण सुत्तेण तेयादव्ववग्गणाए पमाणं परूविदं । तेयादव्ववग्गणा णाम का ।। ७३५ ॥ सुगममेदं पुच्छासुत्तं । क्या लक्षणवाली है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अग्रहणद्रव्यवर्गणा आहारद्रव्यसे प्रारंभ होकर तेजसद्रव्यवर्गणाको नहीं प्राप्त होती है, अतः इन दोनों द्रव्योंके मध्यमें जो होती है उसकी अग्रहणद्रव्यवर्गणा संज्ञा है ।। ७३३ ॥ 'आहारदव्वमधिच्छिदा' इस वचन द्वारा अग्रहणवर्गणा तीन शरीरोंके अयोग्य है और आहारद्रव्यवर्गणाकी उत्कृष्ट द्रव्यवर्गणासे भी जघन्य अग्रहण वर्गणा एक प्रदेश अधिक है यह कहा गया है। तेयादव्ववग्गणं ण पावदि इस वचन द्वारा यह तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और कार्मणवर्गणाके अयोग्य और जघन्य तैजसवर्गणासे यह उत्कृष्ट वर्गणा एक प्रदेश न्यन है यह कहा गया है। 'ताणं दव्वाणं अंतरे' अर्थात् इन दोनों वर्गणाओं के बीच में अग्रहणद्रव्यवर्गणा है। इस द्वारा उसके स्थित होने के प्रदेशका कथन किया गया है। अग्रहणद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर तैजसद्रव्यवर्गणा है ॥ ७३४ ॥ इस सूत्र द्वारा तंजसद्रव्यवर्गणाका प्रमाण कहा गया है । तेजसद्रव्यवर्गणा क्या है ॥ ७३५ ॥ यह पृच्छासूत्र सुगम है। ता० प्रती ' -मधिच्छिदा (ए) एदेण ' इति पाठः । ४ ता० प्रती । -मच्छिदा' इति पाठः। 1ता० प्रतो 'अपरूविदं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org :

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