Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 576
________________ बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ५४३ अगहणवव्ववग्गणाणमुवरि मणदव्ववग्गणा णाम ।। ७१६ ॥ मणदव्ववग्गणाणमुवरिमगहणदव्ववग्गणा णाम ॥ ७१७ ।। आगहणदव्ववग्गणाणमुवरि कम्मइयदव्ववग्गणा णाम ।७१८। एवमुवरिमसुत्ताणं पि सन्वेसिमुच्चारणा कायव्वा । पुणो एदेसिमत्थे भण्णमाणे जहा अभंतरवग्गणाए परूविदं तहा परूवेयव्वं । एदेहि सवेहि म्मि सुत्तेहि पुन्छतवग्गणाणं चेव संभालणं कदं। कुदो ? पुव्वं परूविदत्थस्सेव परूवणादो । एवं वग्गणपरूवणा गदा । वग्गणणिरूवणदाए इमा एयपदेसियपरमाणुपोग्गलवव्ववग्गणा णाम किं गहणपाओग्गाओ किमगहणपाओग्गाओ* ॥ ७१९ ।। पंचण्ण सरीराणं जा गेज्झा सा गहणपाओग्गा गाम । जा पुण तासिमगेज्झा (सा)अगहणपाओग्गा णाम । तासि दोणं मज्झे कत्थ इमा पददि त्ति पुच्छा कदा । एयपदेसियवग्गणा एक्का चेव, तत्थ कधं गहणपाओग्गाओ ति बहुवयण---- अग्रहणद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर मनोद्रव्यवर्गणा होती है ॥७१६।। मनोद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर अग्रहण द्रव्यवर्गणा होती है ॥७१७॥ अग्रहणद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर कार्मणद्रव्यवर्गणा होती है ॥७१८॥ इसी प्रकार आगेके सभी सूत्रोंकी भी उच्चारणा करनी चाहिये । पुनः इनके अर्थका कथन करते समय जिसप्रकार आभ्यन्तरवर्गणामें कथन किया है उस प्रकार कथन करना चाहिये । इन सब सूत्रोंके द्वारा पूर्वोक्त वर्गणाओंकी ही सम्हाल की गई है, क्योंकि, इन द्वारा पहले कहे गये अर्थका ही कथन किया गया है । ___ इस प्रकार वर्गणाप्ररूपणा अनुयोगद्वारा समाप्त हुआ। वर्गणानिरूपणाकी अपेक्षा यह एकप्रदेशी परमाणपुद्गलद्रव्यवर्गणा क्या ग्रहण प्रायोग्य हैं या ग्रहणप्रायोग्य नहीं हैं ।।७१९।। पाँच शरीरोंके जो ग्रहणप्रायोग्य है वह ग्रहण योग्य कहलाती है। परन्तु जो उनके ग्रहणयोग्य नहीं है वह अग्रहणप्रायोग्य कहलाती है। उन दोनोंके मध्य इसका समावेश किसमें होता है इस प्रकारकी पृच्छा इस सूत्रमें की गई है। शंका-- एकप्रदेशी वर्गणा एक ही है। वहां 'गहणपाओग्गाओ' इस प्रकार बहुवचन का निर्देश नहीं बन सकता है ? ४ ता० प्रती 'सव्वेहि सुत्तेहि' इति पाठ: 1 *ता० प्रती । किमगहणपाओग्गाओ' त्यने । णाम ' इत्यधिका पाठ 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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