Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 567
________________ ५३४) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६ ६८७ जवमज्झं ।। ६८७ ॥ उप्पण्णपढमसमयप्पहुडि अंतोमहत्तं सव्वजहण्णघादखुद्दाभवग्गहणमेत्तमुवरि गंतूण सव्वजहण्णजीवणियकालचरिमसमए मरता सहमपज्जत्ता जीवा थोवा। तदुवरिमसमए मरंता जीवा विसेसाहिया । एवं विसेसाहिया विसेसाहिया होदूण मरति जाव सुहमणिगोदमरणजवमझं त्ति । तदुवरि विसेसहीणा विसेसहीणा जाव सुहुमणिगोदपज्जत्तजीवेण बद्धजहग्णाउअणिवत्तिटाणे ति । तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण बादरणिगोदजीवपज्जतयाणं मरणजवमज्झं ॥ ६८८ ॥ उप्पण्णपढमसमयप्पडि घादेदूण दृविदसव्वजहण्णजीवणियकाल मेत्तमवरि गंतूण तस्स चरिमसमए मरंता बादरणिगोदपज्जत्ता जीवा थोवा । तदुवरिमसमए मरंता जीवा विसेसाहिया । एवं विसेसाहिया विसेसाहिया होदूण मरति जाव* सुहमणिगोदपज्जत्तमरगजवमज्झपढमसमओ त्ति । तेण परं विसेसाहिया विसेसाहिया होदूण मरति जाव सहमपज्जत्तमरणजबमज्झं त्ति । तेण परं विसेसहीणा विसेसहीणा होडूण मरंति जाव* बादरपज्जत्तमरणजवमझं ति । तेण परं विसेसहीणा विसेसहीणा होता है ।। ६८७ ॥ उत्पन्न होनेके पहले समयसे लेकर सब से जघन्य घात क्षुल्लक भवग्रहण का अन्तर्मुहूर्त जाकर सबसे जघन्य जीवनीय कालके अन्तिम समयमें मरने वाले सूक्ष्म पर्याप्त जीव स्तोक है । उससे उपरिम समयमें मरने वाले जीव विशेष अधिक है । इस प्रकार सूक्ष्म निगोद मरण यवमध्यके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक विशेष अधिक विशेष अधिक होकर जीव मरते हैं। उससे ऊपर सूक्ष्म निगोदपर्याप्त जीव द्वारा बद्ध जघन्य आयुनिर्वृत्तिस्थानके प्राप्त होने तक विशेष हीन विशेष हीन जीव मरते हैं। उसके बाद अन्तर्महर्त जाकर बादर निगोद पर्याप्त जीवोंका मरणयवमध्य होता है । ६८८ । उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर घात करके स्थापित किये गये सबसे जघन्य जीवनीय कालमात्र ऊपर जाकर उसके अन्तिम समय में मरनेवाले बादर निगोद पर्याप्त जीव थोडे हैं। उससे उपरिम समयमें मरने वाले जीव विशेष अधिक हैं। इस प्रकार सुक्ष्म निगोद पर्याप्तकोंके मरणयवमध्यके प्रथम समयके प्राप्त होने तक विशेष अधिक विशेष अधिक होकर जीव मरते हैं। उसमे आगे सूक्ष्म पर्याप्तकों के मरण यवमध्यके प्राप्त होने तक विशेष अधिक विशेष अधिक जीव मरते हैं। उसके बाद बादर पर्याप्तकोंके मरणयवमध्यके प्राप्त होने तक विशेष हीन विशेष होन ४ ता० प्रती -जीवणि ( का) य काल- का० प्रती -जीवणिकायकाल-' इति पाठः । * ता० प्रती 'होदूण जाव ' इति पाठः। ता० प्रती . विसेसाहिया विमेमाहिया इति पाठ 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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