Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

Previous | Next

Page 563
________________ ५३० ) छवखंडागमे वग्गणा - खंड ( ५, ६ ६८३ बादर - सुहुमणिगोदपज्जत्ताणं * पढमदाए पढमं चेव एदाणि भग्नमाणावासयाणि होंति, सेसाणि पञ्छा होंति त्ति भणिदं होदि । तदो जवमज्झं गंतूण सहमणिगोदजीवपज्जत्तयाणं निव्वतिट्ठाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ ६८३ || बादर-सुहुमणिगोदपज्जत्ताणं सव्वजहण्णाअं तिणि भागे काढूण तत्थ पढमतिभागस्स संखेज्जदिभागे जाणि आवासयाणि त्ताणि भणिस्सामो । तदो जवमज्झं गंतणे त्ति भणिदे उप्पण्णपढमसमयप्पहूडि पज्जतीणं पारंभं कादूण तदो अंतोमुहुत्तमुवरि जहा जवमज्झं तहा गंतूण सुहुमणिगोदजीवपज्जत्ताणं णिव्वत्तिद्वाणाणि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि होंति । का णिव्त्रत्ती णाम? चदुष्णं पज्जत्तीणं पिल्लेवणं निव्वत्ती । णिव्वत्ति त्ति भणिदे एत्थ जवमज्झकमो वुच्चदे । तं जहा- चत्तारि पज्जत्तीओ सव्वलहुएण कालेण निव्वत्तया जीवा थोवा । तदुवरिमसमए निव्वत्तया विसेसाहिया । एवं विसेसाहिया विसेसाहिया होङ्कण गच्छंति जाब सुहुमणिगोदणिल्लेब जीवजवमज्झति । तेण परं विसेसहीणा विसेसहीणा होण गच्छंत जाव चदुष्णं पज्जत्तीणमुक्कस्स पिल्लेवणद्वाणं ति । जवमज्झस्स हेट्ठिम उवरिमाणि चदुष्णं पज्जतीणं बादर निगोद पर्याप्त और सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंके पढमदाए अर्थात् प्रथम ही ये कहे जानेवाले आवश्यक होते हैं। शेष आवश्यक बादमें होते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । उसके बाद यवमध्य जाकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्वृत्तिस्थान आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं ॥ ६८३ ॥ बादर निगोद पर्याप्त और सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंकी सबसे जघन्य आयुके तीन भाग करके वहाँ प्रथम त्रिभागके असंख्यातवें भाग में जो आवश्यक होते हैं उन्हें कहेंगे । उसके बाद यवमध्य जाकर ऐसा कहने पर उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर पर्याप्तियोंका प्रारम्भ करके उसके बाद अन्तर्मुहूर्त ऊपर जिस प्रकार यवमध्य है उस प्रकार जाकर सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंके निर्वृत्तिस्थान भावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं । शंका -- निर्वृत्ति किसे कहते हैं ? समाधान-- चार पर्याप्तियोंके निर्लेपनको निर्वृत्ति कहते है । निर्वृत्ति ऐसा कहने पर यहाँ यवमध्य के क्रमका कथन करते हैं। यथा- चार पर्याप्तियों के सबसे अल्प कालके द्वारा निर्वत्तक जीव सबसे थोडे हैं । उसके उपरिम समय में निर्वत्तक जीव विशेष अधिक हैं । इस प्रकार सूक्ष्म निगोद निर्लेपनस्थान जीव यवमध्यके प्राप्त होने तक जीव विशेष अधिक विशेष अधिक होकर जाते हैं। उसके बाद चार पर्याप्तियोके उत्कृष्ट निर्लेपनस्थानके Xx ता० प्रतौ Jain Education International 1 बादरहमणिगोदपज्जत्ताणं' अय पाठ: सूत्रत्वेन निर्दिष्टः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634