Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 561
________________ ५२८ ) छवखंडागमे वग्गणा - खंड ( ५,६६७८ णाभावो ण वोत्तुं सविकज्जदे, पुव्वमागदपोग्गलक्खंधेहि व पच्छा गहिदपोग्गल - क्खंधेहि दव्वपज्जत्तीणं संठाणंतरस्त अवयवंतरस्स वा अणुवलंभेण तेसि तत्थ वावाराभावादो । तेण कारणेण जिल्लेविदे संते जं पोग्गल गहणं सरीरट्ठं पुव्विल्लं पज्जतिनिमित्तमिदि वृत्ते परमत्थदो पुण सव्वं पोग्गलग्गहणं सरीरट्ठ चेव, सरीरवदिरित्तपज्जत्तीणमभावादो । ओरालिय- वेउब्विय - आहारसरीराणं जहाकमेण विसेसा -- हियाणि ॥ ६७८ ॥ ओरालिय-उब्विय- आहारसरी राणमुक्कस्समणणिव्वत्तिद्वाहितो उवरि अंतोमुहुत्तं गंतून आहारसरीरस्स जहण्णं पिल्लेवणद्वाणं होदि । तदो समउत्तराविकमेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तेसु आहारसरी रजिल्लेवणट्ठाणेसु उवरि गदेसु वेउव्वियसरीरस्स जहण्णणिल्लेवणद्वाणं होदि । तदो वेउब्विय- आहारसरीराणं समउत्तरादिकमेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्त जिल्लेवणट्ठाणेसु गदेसु ओरालियसरीरस्स जहण्णणिल्लेवणद्वाणं दिस्सदि । तदो समउत्तरादिकमेण तिष्णं सरीराणं णिल्लेagr आवलिया असंखेज्जदिभागमेत्तेसु गदेसु आहारसरीरस्स उक्करसपिल्लेवाणं थक्कदि । तदो समउत्तरादिकमेण उवरि ओरालिय- वे उव्वियसरीराणं निर्लेपनस्थानोंका अभाव कहना शक्य नहीं हैं, क्योंकि, पहले आए हुए पुद्गलस्कन्धोंके समान बाद में ग्रहण किये गये पुद्गलस्कन्धोंद्वारा द्रव्यपर्याप्तियोंके संस्थानान्तरकी या अवयवान्तरकी उपलब्धि नहीं होने से उनका उनके निर्माण में व्यापार नहीं होता । इस कारण निर्लेपित होने पर जो पुद्गलोंका ग्रहण होता है वह शरीर के लिए होता है या पूर्व पर्याप्तियोंके लिए होता है ऐसा पूछने पर उसका उत्तर यह है कि परमार्थसे सब पुद्गलोंका ग्रहण शरीर के लिए ही होता है, क्योंकि, शरीरको छोड़कर पर्याप्तियोंका अभाव है । वे निर्लेपनस्थान औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीर के क्रमसे विशेष अधिक हैं ।। ६७८ ।। औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीर के उत्कृष्ट मनोनिर्वृत्तिस्थानों के आगे अन्तर्मुहूर्त जाकर आहारकशरीरका जघन्य निर्लेपनस्थान होता है । उसके बाद आहारकशरीरसम्बन्धी निर्लेपनस्थानोंके एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ऊपर जाने पर वैक्रियिक शरीरका जघन्य निर्लेपनस्थान होता है । उसके बाद क्रियिक और आहारक शरीरसम्बन्धी निर्लेपनस्थानोंके एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जानेपर औदारिकशररीका जघन्य निर्लेपनस्थान दिखलाई देता है । उसके बाद तीनों शरीरोंके निर्लेपनस्थानोंके एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जाने पर आहारकशरीरका उत्कृष्ट निर्लेपनस्थान श्रान्त होता है । उसके बाद औदारिकशरीर X का० प्रती 'पज्जत्तनिमित्तमिदि' इति पाठः । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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