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५, ६, ६७७ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया
( ५२७ द्वाणं णाम? जत्थ अप्पज्जत्तिणिमित्तं पोग्गलाणमागमो थक्कदि तण्णिल्लेबणाणं णाम। छसु पज्जत्तीसु णिप्पण्णासु पुणो जो घेप्पदि पोग्गलपिंडो सो सरीरस्स चेव होदि ग पज्जत्तीणं, णिप्पण्णाणं णिप्पत्तिविरोहादो त्ति । एत्थ परिहारो उच्चदे। तं जहाआगदपोग्गलेसु अंतोमहत्तेण सत्तधादुसरूवेण परिणदेसु सरीरपज्जत्ती णाम । ण च तम्हि काले- सरीरणिप्पत्ती अस्थि चम्म-रोम-णह कालेज्ज-फुफ्फुसादीणं णिप्पत्तीए तदो अभावादो। सज्छेसु* पोग्गलेसु मिलिदेसु तब्बलेण बज्झत्थगहणसत्तीए समुप्पत्ती इंदियपज्जत्ती णाम । ण च तम्हि काले बज्झिदियाणिप्पत्ती अत्थि, बज्झिदिएसु अद्धणिप्पण्णेसु चेव सगसगविसयग्गहणसत्तीए समप्पत्तीदो। ण च अंतोमुत्तकालेणेव अज्छिमंद चक्खु गोलियादीणं णिप्पत्ती अस्थि, मोरंडयरसेसु तहाणवलंभादो । एवं सेसपज्जत्तीओ वि सगसगदन्वेसु अद्धणिप्पण्णेसु चेव णिप्पज्जति ति वत्तव्वं । तासि दव्वपज्जत्तीणमणिप्पण्णाणं णिप्पत्तिणिमित्तं पोग्गलपिडो पज्जत्तयदस्स वि आगच्छदि । एवमागच्छमाणे जत्थ पंचण्णं पज्जत्तीणं दव्ववयरणाण मक्कमेण णिप्पत्ती होदि तण्णिल्लेवणटाणं णाम । जेण छप्पपज्जत्तिमयं सरीरं तेण गिल्लेविदे संते पच्छा आगच्छमाणपोग्गलक्खंधो वि छष्णं पज्जत्तीणं चेव आगच्छदि ति पिल्लेवण
शंका - निर्लेपनस्थान किसे कहते हैं ? जहां पर छह पर्याप्तियोंके लिए पुद्गलोंका आना रुक जाता है उसे निर्लेपनस्थान कहते हैं। इसलिए छह पर्याप्तियोंके निष्पन्न होने पर पुनः जो पुद्गलपिण्ड ग्रहण किया जाता है वह शरीरका ही होता है पर्याप्तियोंका नहीं होता, क्योंकि, निष्पन्नोंकी निष्पत्ति मानने में विरोध आता है ?
___समाधान-- यहां पर इस शंकाका समाधान करते हैं। यथा- आये हुए पुद्गलोंके अन्तर्महर्त कालद्वारा सात धातुरूपसे परिणत होने पर शरीरपर्याप्ति कहलाती हैं। उस कालमें शरीरकी निष्पत्ति नहीं है, क्योंकि, उससे चर्म, रोम, नख, कलेजा और फुप्फुस आदिकी निष्पत्ति नहीं होती। स्वच्छ पुद्गलोंके मिलने पर उनके बलसे बाह्य अर्थके ग्रहण करनेकी शक्तिका उत्पन्न होना इन्द्रियपर्याप्ति कहलाती है। उस काल में बाह्य इन्द्रियोंकी निष्पत्ति नहीं होती है, क्योंकि, इन्द्रियोंके अर्ध निष्पन्न होने पर ही अपने अपने विषयको ग्रहण करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। और अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा ही अक्षिपुट और चक्षुगोलक आदिकी निष्पत्ति हो नहीं सकती, क्योंकि, मोर जो अण्डे देती है उनसे रसों में उस प्रकारकी उपलब्धि नहीं होती। इसी प्रकार शेष पर्याप्तियां भी अपने अपने द्रव्योंके अर्ध निष्पन्न होने पर ही निष्पन्न हो जाती हैं ऐसा कहना चाहिए। उन अर्धनिष्पन्न द्रव्यपर्याप्तियोंकी निष्पत्तिके लिए पर्याप्त जीवके भी पुद्गलपिंड आता है । इस प्रकार पुद्गल पिण्डके आने पर जहां पर पांच पर्याप्तियोंके द्रव्य उपकरणोंकी युगपत् निष्पत्ति होती है उसे निर्लेपनस्थान कहते हैं । यतः शरीर छह पर्याप्तिमय हैं, अतः निर्लेपित होने पर बादमें आनेवाला पुद्गलस्कन्ध भी छह पर्याप्तियोंके लिये ही आता है, इसलिए वहाँ
है ता० प्रती णाम तम्हि काले इति । ४ ता. प्रतो अ (ण) त्थि इति पाठः। * का प्रती सम्वेसु इति पाठः * ता० प्रती समप्पज्जती इति पाठः । का० प्रती वजिंदियाणं इति पाठः । N म० प्रतिपाठोऽयम् 1 ता० प्रती अत्थि चक्खु- का• प्रतो अत्थिकुडचक्खु- इति पाठः1 म. प्रतिपाठोऽयम् । प्रत्यो पज्जयदस्स इति पाठ:1 . का० प्रतो दव्वयरणाण इति पाठः।
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