Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 558
________________ ( ५२५ बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया सत्थाणे विसेसाहियाणि । एत्थ अप्पाबहुअं- सम्वत्थोवाणि ओरालियसरीरस्स आणा -- पाणभासा-मणणिव्वत्तिट्ठाणाणि ॥ ६७४ ॥ कारणं सुगमं । वेउव्वियसरीरस्स आणापाण-भासा-मणणिवत्तिट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥ ६७५ ।। ओरालियसरीरस्स आणापाणणिवत्तिट्टाणेहितो वेउब्वियसरीरस्स आगापागणिवत्तिट्टाणाणि विसेसाहियाणि । ओरालियसरीरस्स भासाणिव्वत्तिवाहितो वेउब्वियसरीरस्स भासाणिवत्तिट्टाणाणि विसेसाहियाणि । ओरालियसरीरस्स मणणिवत्तिट्राणेहितो वेउब्वियसरीरस्स मणणिवत्तिढाणाणि विसेसाहियाणि । सव्वत्थ विसेसपमाणमावलि. असंखेज्जदिभागो। आहारसरीरस्स आणापाण-भासा-मणणिवत्तिट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥ ६७६ ।। वेउब्वियसरीरस्स आणापाणणिव्वत्तिट्टाणेहितो आहारसरीरस्स आणापाणणिवत्तिट्ठाणाणि विसेसाहियाणि विउव्वियसरीरस्स भासाणिवत्तिट्ठाणेहितो आहार भी स्वस्थानमें क्रमसे विशेष अधिक हैं । यहाँ अल्पबहुत्व- औदारिकशरीरके आनापान, भाषा और मनोनिवृत्तिस्थान सबसे स्तोक हैं ॥६७४।। __ कारण सुगम है। वैक्रियिकशरीरके आनापान, भाषा और मनोनिर्वत्तिस्थान विशेष अधिक हैं ॥६७५।। __ औदारिकशरीरके आनापान निवृत्तिस्थानोंसे वैक्रियिकशरीरके आनापाननिर्वृत्तिस्थान विशेष अधिक है। औदारिकशरीरके भाषानिर्वत्तिस्थानोंसे वैक्रियिकशरीरके भाषानिर्वृत्तिस्थान विशेष अधिक है। तथा औदारिकशरीरके मननिर्वत्तिस्थानोंसे वैक्रियिकशरीरके मननिर्वत्तिस्थान विशेष अधिक हैं । सर्वत्र विशेषका प्रमाण आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । ___ आहारकशरीरके आनापान, भाषा और मनोनिवृत्तिस्थान विशेष अधिक हैं ॥६७६॥ वैक्रियिकशरीरके आनापाननिर्वृत्तिस्थानोंसे आहारकशरीरके आनापाननिर्वृत्तिस्थान विशेष अधिक हैं । वैक्रियिकशरीरके भाषानिर्वृत्तिस्थानोंसे आहारकशरीरके भाषानिर्वृत्तिस्थान * ता० प्रती ' आणापाणभामाणिव्वत्तिट्ठाणाणि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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