Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 557
________________ ५२४ । छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ६७३ गिवत्तिटाणेसु उवरि गदेसु वेउब्वियसरीरस्स भासापज्जत्तीए उक्कस्तणिव्यत्तिढाणं थक्कदि । तदो उवरि समयउत्तरादिकमेण आवलि. असंखे०भागमेत्तेसु भासापज्जत्तीए णिव्वत्तिट्ठाणेसु गदेसु ओरालियसरीरस्स भासापज्जत्तीए उकस्सणिवत्तिद्वाणं थक्कदि । तेणेदाणि जहाकमेण विसेसाहियाणि । पुणो ओरालिय-वेउविय आहारसरीरउक्कस्सभासापज्जत्तिद्वाणाणमुवरि अंतोमहत्तं गंतूण आहारसरीरस्स मणपज्जत्तीए सव्वजहण्णं णिव्वत्तिट्टाणं होदि । तदो उवरि समय उत्तरादिकमेण आवलि० असंखे० भागमेत्तेसु आहारसरीरस्स मणणिव्वत्तिट्ठाणेसु गदेसु वेउब्वियसरीरस्स सव्वजहणं मणणिवत्तिट्ठाणं होदि । तदो उर्वार वेउव्वियआहारसरीराणं समय उत्तराविकमेण आवलि० असंखे० भागमेत्तेसु मणणिव्वतिहाणेसु गदेसु ओरालियसरीरस्स सवजहणं मणणिव्वत्तिद्वाणं होदि । तदो उवरि ओरालिय-वेउम्विय-आहारसरीराणं समयउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे० भागमेत्तेसु मणणिव्वत्तिटाणेसु गदेसु तदो आहारसरीरस्स उक्कस्समणणिन्वत्तिद्वाणं थक्कदि । तदो उरि ओरालिय-वेउब्वियसरीराणं समयउत्तरादिकमेण आवलि० असंखेभागमेत्तेसु मणिव्वत्तिट्टाणेसु गदेस वेउब्वियसरीरस्त उक्कस्समणणिवत्तिढाणं थक्कदि । तदो उरि समय उत्तरादिकमेण आवलि.असंखे० भागमेत्तेस मणिबत्तिट्टाणेस गदेसु ओरालियसरीरस्स उक्कस्सं मणणिवत्तिट्टाणं थक्कदि । एदाणि वि जहाकमेण भाषापर्याप्तिका उत्कृष्ट निर्वत्तिस्थान श्रान्त होता है । उसके बाद ऊपर एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण भाषापर्याप्तिनिर्वत्तिस्थानोंके जानेपर औदारिक शरीरकी भाषापर्याप्तिका उत्कृष्ट निर्वत्तिस्थान श्रान्त होता है। इसलिए ये क्रमसे विशेष अधिक है। पुनः औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके उत्कृष्ट भाषापर्याप्तिनिर्वृत्तिस्थानोंके ऊपर अन्तर्मुहुर्त जाकर आहारकशरीरकी मनःपर्याप्तिका सबसे जघन्य निर्वृत्तिस्थान होता है। इसके बाद ऊपर आहारकशरीरके मनःनिर्वृत्तिस्थानों के एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जाने पर वैक्रियिकशरीरकी मनःपर्याप्तिका सबसे जघन्य निर्वात्तस्थान होता है। उसके बाद ऊपर वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीर सम्बन्धी मनःपर्याप्ति निर्वृत्तिस्थानोंके एक समय अधिक आदिके क्रम से आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जानेपर औदारिकशरीर की मनःपर्याप्तिका सबसे जघन्य निर्वत्तिस्थान होता है। उसके बाद ऊपर औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीर सम्बन्धी मन:निर्वत्तिस्थानोंके एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असख्यातवें भागप्रमाण जाने पर आहारकशरीरका उत्कृष्ट मनःपर्याप्तिनिर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है। उसके बाद ऊपर औदारिकशरीर और वैक्रियिकशरीर सम्बन्धी मनःपर्याप्तिनिर्वृत्तिस्थानों के एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असख्यातवें भागप्रमाण जाने पर वैक्रियिक शरीरका उत्कृष्ट मनःपर्याप्तिनिर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है। उसके बाद एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण मन:पर्याप्तिनिर्वृत्तिस्थानोंके जाने पर औदारिकशरीरका उत्कृष्ट मनःपर्याप्तिनिर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है। ये ता० प्रतो सरीरस्स मणणिव्वत्तिट्ठाणं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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