Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 555
________________ ५२२ ) छवखंडागमे वग्गणा - खंड ( ५,६६७३ नादो असंखे ० भागमेत्तानि होंति । तदो ओरालियसरीरस्स उक्कस्सआगापाणणिव्यसिट्टाअंतोमुहुत्तमेत्तमद्वाणमुवरि गंतॄण ओरालिय वेड व्विय- आहारसरीराणमावलि० असंखे ० भागमेत्ताणि भासाणिव्वत्तिट्टणाणि होंति । तदो अंतोमहुत्तमेत्तद्वाणमुवरि गंतूण ओरालिय- चेउब्विय- आहारसरीराणमावलि० असंखे ० भागमेत्ताणि मणिवत्तिद्वाणाणि होंति त्ति घेत्तव्वं । ओरालिय- वेउब्विय - आहारसरीराणि जहाकमं विसेसाहियाणि । ६७३ । ओरालिय सरीरस्स सब्बुक्कस्स इंदियणिव्वत्तिद्वाणादो उवरि अंतोमुहुत्तं गंतून आहारसरीरस्स आणापाणपज्जत्तीए सव्वजहणणिवत्तिद्वाणं होदि । तदो समउत्तरादिकमेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तेसु आहारसरीरस्स आणापाणपज्जत्तीए निव्वत्तिट्ठाणे उवरि गदेसु तदो वेउव्दियसरीरस्स सव्वजहण्णमाणापानपज्जत्तीए णिव्वत्तिद्वाणं होदि । तत्तो उवरि वेउव्विय- आहारसरीराणं समउत्तर दुसमउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे ० भागमेत्तेसु आणापाणपज्जत्तीए णिण्वत्तिट्ठाणेसु गदेसु ओरालियस - रस्स सव्वजहण्णमाणापाणपज्जत्तीए निव्वत्तिद्वाणं होदि । तदो उवरिमोरालियवे उव्विय- आहारसरीराणं तिन्हं पि समउत्तरादिकमेण आवलियाए असंखे ० भागभागप्रमाण होते हैं । फिर औदारिकशरीर के उत्कृष्ट आनापान निर्वृत्तिस्थानसे अन्तर्मुहूर्तप्रमाण अध्वान ऊपर जाकर औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीर के आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण भाषानिवृत्तिस्थान होते हैं । फिर अन्तर्मुहूर्त मात्र अध्वान ऊपर जाकर औदारिकशरीर वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण मननिर्वृत्तिस्थान होते हैं ऐसा यहाँ पर ग्रहण करना चाहिए । ये निर्वृत्तिस्थान औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीर के क्रमसे विशेष अधिक होते हैं ।। ६७३ ॥ औदारिकशरीर के सबसे उत्कृष्ट इन्द्रियनिर्वृत्तिस्थानसे ऊपर अन्तर्मुहूर्त जाकर आहारकशरीर की आनापानपर्याप्तिका सबसे जघन्य निर्वृत्तिस्थान होता है । उससे आहारकशरीर की आनापानपर्याप्ति के निर्वृत्तिस्थानोंके एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ऊपर जाने पर उसके बाद वैक्रियिकशरीरकी सबसे जघन्य आनापानपर्याप्तिका निर्वृत्तिस्थान होता है । उसके बाद ऊपर एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके आनापानपर्याप्ति के निर्वृत्तिस्थानोंके जानेपर औदारिकशरीरकी सबसे जघन्य आनापानपर्याप्तिका निर्वृत्तिस्थान होता है । उसके बाद ऊपर औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीर इन तीनोंके ही एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण आनापानपर्याप्तिके निर्वृत्ति ० का० प्रती ' उक्कस्स इंदियणिव्वत्तिद्वाणादो' इति पाठः । का० प्रतो सव्वजहणं णिव्वत्तिद्वाणं' इति पाठा | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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