Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 518
________________ ५, ६, ६३१ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया ( ४८५ मस्स अत्थपरूघणा समत्ता। 'जत्थेय मरदि जीवो तत्थ दु मरणं भवे अणताणं' एस्स गाहापढमद्धस्स अस्थपरूवणटुमत्तरसुत्तं भणदि -- जो णिगोदो जहण्णएण वक्कमणकालेण वक्कमंतो जहण्णएण पबंधणकालेण पबद्धो तेसिं बादरणिगोवाणं तहा पबद्धागं मरणक्कमेण णिग्गमो होदि ॥ ६३१ ।। बादरणिगोदाणं वक्कमणकालो उत्पत्तिकालो जहण्णओ वि अस्थि उक्कस्सओ वि अस्थि । तत्थ जो णिगोदो जहण्णण उप्पत्तिकालेण उप्पज्जमाणो तस्स पबंधणकालो जहण्णओ वि अस्थि उक्कस्सओ वि अत्थि । तत्थ जहण्णएण पबंधणकालेण जो पबद्धो। जो णिगोदो जहण्णेण बक्कमणकालेण वक्कममाणो जहण्णण पबंधणकालेण पबद्धो तस्स मरणक्कम परूवेमि त्ति भणिदं होदि । अणंताणं णिगोदाणं कथमेगवयणेण णिहेसो ? ण, सरीरदुवारेण तेसिमेयत्तमत्थि त्ति एगवयणेण णिद्देसाविरोहादो । को पबंधणकालो णाम? प्रबध्नन्ति एकत्वं गच्छन्ति अस्मिन्निति प्रबन्धनः । प्रबन्धनश्चासौ कालश्च प्रबन्धनकालः । तेण पबंधणकालेण पबद्धाणं बादरणिगोदाणं मरणक्कमेण णिग्गमो होदि । केरिसाणं बावरणिगोवाणं ति भणिदे 'तहा - किया। अब इसी गाथाके ' जत्थेव मरदि जीवो तत्थ दु मरणं भवे अणंताणं ' इस पूर्वार्धके अर्थका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं ___ जो निगोद जघन्य उत्पत्तिकालके द्वारा उत्पन्न होकर जघन्य प्रबन्धनकाल के द्वारा बन्धको प्राप्त हुआ है उन बादर निगोदोंका उस प्रकारसे बन्ध होनेपर मरणके क्रमानुसार निर्गम होता है । ६३१ । बादर निगोदोंका प्रक्रमणकाल अर्थात् उत्पत्तिकाल जघन्य भी है और उत्कृष्ट भी है। वहाँ जो निगोद जघन्य उत्पत्ति कालके द्वारा उत्पन्न होता है उसका प्रबन्धनकाल जघन्य भी है और उत्कृष्ट भी है । उनमेंसे जघन्य प्रबन्धनकालके द्वारा जो बन्धको प्राप्त हुआ अर्थात जो निगोद जघन्य उत्पत्तिकालके द्वारा उत्पन्न होकर जघन्य प्रबन्धन कालके द्वारा बन्धको प्राप्त होता है उसके मरणके क्रमका कथन करते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । शंका- अनन्त निगोदोंका एक वचनके द्वारा निर्देश कैसे किया ? समाधान- नहीं, क्योंकि, शरीर द्वारा उनका एकत्व है इसलिए एक वचन द्वारा निर्देश करने में विरोध नहीं है। शंका- प्रबन्धनकाल किसे कहते हैं ? समाधान- बंधते हैं अर्थात् एकत्वको प्राप्त होते हैं जिसमें उसे प्रबन्धन कहते हैं। तथा प्रबन्धनरूप जो काल वह प्रबन्धनकाल कहलाता है । उस प्रबन्धनकालके द्वारा प्रबद्ध हुए बादर निगोदोंका मरणके क्रमसे निर्गम होता है। किस प्रकारके बादर निगोदोंका ऐसा पूछनेपर कहा हैं- 'तहा पबद्धाणं ' अर्थात् उस पहले कहे गये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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