Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

Previous | Next

Page 523
________________ ४९० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं ( ५, ६, ६३२ खीणकसायपढमसमए मदजीवेहितो आवलियाए असंखेज्जविभागमेत्तमद्धाणं गंतूण दुगुणवड्ढी होदि। एवमेत्तियमेत्तियमवद्विदमद्धाणं गंतूण दुगणवड्ढी होदि। जाव असंखेज्जदिमागभहियमरणचरिमसमओ ति! तत्तो उवरि संखेज्जसमयमेत्तमद्धाणं गंतूण दुगणवड्ढी होदि जाव संखेज्जविभागभहियमरणचरिमसमओ ति। तेण परं णिरंतरकमेण असंखेज्जगणा असंखेज्जगणा जाव खीणकसायचरिमसमओ ति। एत्थ तिणि अणुयोगद्दाराणि-परूवणा पमाणमप्पाबहुअं चेदि। परूवणदाए एगपदेसगुणहाणिटाणंतरं णाणागणहाणिट्टाणंतरसलागाओ च अस्थि । पमाणं- असंखेज्जभागब्भहियमरणम्मि एगजीव-दुगणवडिट्ठाणंतरमावलियाए असंखेज्जविभागो। संखेज्जभाग भहियमरणम्मि एगजीवदुगुणवड्डिअद्धाणं संखेज्जसमयमेत्तं होदि । णाणागणहाणिसलागपमाणमावलियाए संखेज्जदिभागो। अप्पाबहुअं सव्वत्थोवं एगजीवदुगणवधिटाणंतरं । णाणागुणहाणिसलागाओ असंखेज्जगणाओ। एवं परम्परोवणिधा समत्ता। अप्पाबहुअं- सव्वत्थोवा खीणकसायपढमसमए मदजीवा । अपढम-अचरिमसमएसु मदजीवा असंखेज्जगणा । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो। कुदो ? खीणकसायपढम-चरिमसमएसु मदजीवे मोत्तण तत्थ सेसासेसमदजीवग्गहणादो । अचरिमसमए मदजीवा विसेसाहिया। केत्तियमेत्तेण ? पढमसमए मदजीवमेत्तेण । चरिमसमए मदजीवा असंखेज्जगुणा। को गुणगारो? पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो। क्षीणकषायके प्रथम समयमें मरे हुए जीवोंसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाकर दूनी वृद्धि होती है। इस प्रकार इतने इतने अवस्थित स्थान जाकर दूनी वृद्धि होती है और यह दूनी वृद्धिका क्रम असंख्यातवें भाग अधिक मरणके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक जानना चाहिये । उसके आगे संख्यात समय प्रमाण स्थान जाकर दूनी वृद्धि होती है और यह क्रम संख्यातवें भाग अधिक मरणके अन्तिम समय तक जानना चाहिए। उसके आगे मिरन्तरक्रमसे क्षीणकषाय के अन्तिम समयके प्राप्त होने तक प्रत्येक समयमें असंख्यातगणे असंख्यातगुणे होते हैं। यहां तीन अनुयोगद्वार हैं- प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व। प्ररूपणा की अपेक्षा एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर है और नानागुणहानिस्थानान्तर शलाकायें हैं । प्रमाणअसंख्यातभागवृद्धिरूप मरणमें एकजीवद्विगुणवृद्धिस्थानान्तर आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । संख्यातभागवृद्धिरूप मरणमें एकजीवद्विगुणवृद्धिअध्वान संख्यात समयप्रमाण है । नानागुणहानिशलाकाओंका प्रमाण आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अल्पबहुत्व- एकजीवद्विगुणवृद्धिस्थानान्तर सबसे स्तोक है। नानागुणहानिशलाकायें असंख्यातगुणी हैं। इस प्रकार परम्परोपनिधा समाप्त हुई। ___अल्पबहुत्व- क्षीणकषायके प्रथम समयमें मृत जीव सबसे थोडे हैं । अप्रथम-अचरम समयोंमें मृत जीव असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, क्षीणकषायके प्रथम और अन्तिम समयमें मरे हुए जीवोंको छोडकर वहाँ शेष समस्त मृत जीवोंको ग्रहण किया है । अचरम समयमें मृत जीव विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं? प्रथम समयमें मत जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं। अन्तिम समयमें मत जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

Loading...

Page Navigation
1 ... 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634