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५, ६, ६३५ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया
( ४९१ अपढ़मसमए मदजीवा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? अपढम-अचरिमसमएसु मदजीवमेत्तेण । सव्वेसु समएसु मदजीबा विसेसाहिया। केत्तियमेतेण ? पढमसमए मदजीवमेत्तेण । एवं अप्पाबहुअं समत्तं ।
संपहि खीणकसायकाले जहण्णाउअमेत्ते सेसे बादरणिगोदा ण उप्पज्जति खोणकसायसरीरे । कुदो ? जीवणियकालाभावादो । एदस्स अत्थस्स जाणावणठें आउआणमप्पाबहुअं भगदि ।
एत्थ अप्पाबहुअं--सव्वत्थोवं खुद्दाभवग्गहणं ॥६३३॥
कुदो? एइंदियस्स बंधणिसेयखुद्दाभवग्गहणं घादिय उप्पइदसव्वजहण्णजीवणियकालग्गहणादो । खोणकसायकाले एत्तियमेत्ते सेसे बादर-सुहमणिगोदजीवा णियमा ण उप्पज्जति ति घेत्तव्वं ।
एइंदियस्स जहणिया णिवत्ती संखेज्जगुणा ॥६३४॥
कुदो ? बादर-सुहमणिगोदअपज्जत्ताणं घादेण विणा जहण्णजीवणियकालगगणादो। को गुणगारो ? संखेज्जा समया। .
सा चेव उक्कस्सिया विसेसाहिया ॥६३५॥
असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? पत्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । अप्रथम समयमें मत जीव विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं? अप्रथम-अचरम समयोंमें मत जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं। सब समयोंमें मत जोव विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं ? प्रथम समय में मृत जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं । इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
__ अब क्षीणकषायके कालमें जघन्य आयुप्रमाण कालके शेष रहनेपर क्षीणकषायके शरीरमें बादर निगोद जीव नहीं उत्पन्न होते हैं, क्योंकि, जीवनीय कालका अभाव है । इस प्रकार इस अर्थका ज्ञान कराने के लिए आयुओंका अलाबहुत्व कहते हैं--
यहाँ अल्पबहुत्व- क्षल्लकभवग्रहण सबसे स्तोक है ।। ६३३ ।।
क्योंकि, एकेन्द्रियके बन्धको प्राप्त हुए निषेकरूप क्षुल्लक भवग्रहणका घात करके उत्पन्न कराये गए सबसे जघन्य जीवनीयकालका यहां ग्रहण किया है । क्षीणकषायके कालमें इतने कालके शेष रहनेपर बादरनिगोद जीव और सूक्ष्म निगोद जीव नियमसे नहीं उत्पन्न होते हैं यह यहाँपर ग्रहण करना चाहिए ।
एकेन्द्रियकी जघन्य निर्वृत्ति संख्यातगुणी है ॥ ६३४ ।।
क्योकि, बादर और सूक्ष्म मिगोद अपर्याप्तकोंके घात हुए बिना प्राप्त हुए जघन्य जीवनीय कालका ग्रहण किया है । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है।
वही उत्कृष्ट निर्वत्ति विशेष अधिक है ॥ ६३५ ॥
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