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५, ६, ६५६ )
पंधणाणुयोगद्दारे चूलिया
( ५११
अपज्जताणं असंखेपद्धाए पढमसमओ त्ति । एत्थ जवमज्झस्स हेडा आवलियाए असंखेज्जविभागो उवरि अंतोमहत्तं एगगुणहाणिअद्धाणं णाणागणहाणिसलागाओ च आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ त्ति के वि आइरिया भणंति । के वि पुण एत्थ एग पि दुगुणवडिपमाणं णस्थि त्ति भणंति ।
तदो अंतोमुत्तं गंतूण बावरणिगोवजीवअपज्जत्तयाणमाउअबंधजवमझं ॥ ६५५ ॥
एस्थ जथा सुहमणिगोदअपज्जत्ताणमाउअबंधजवमज्झस्स परूवणा कदा तहा कायव्वा । परि सुहमणिगोदअपज्जत्तजवमज्झस्त जहण्णट्ठाणादो हेट्ठा आवलि० असंखे०भागमेत्तट्टाणाणि ओसरिदूण बादरणिगोदअपज्जत्ताणं पढम आउअबंधढाणं होदि । सुहमणिगोदअपज्जत्तजवमज्झस्स चरिमट्ठाणादो उवरि आवलियाए असंखे०भागट्टाणाणि गंतूण बादरणिगोद अपज्जत्ताणं जवमज्झस्त चरिमट्ठाणं होदि । एवं जवमझदेसस्स वि वत्तव्वं ।
तदो अंतोमुहत्तं गंतूण सुहमणिगोदजीवअपज्जत्तयाणं मरणजवमझं ॥ ६५६ ।।
तदो अंतोमहुत्तमिदि वृत्ते उप्पण्णपढमसमयप्पहुडि जाव खुद्दाभवरगहणचरिम
अपर्याप्तकोंके आसंक्षेपाद्धाके प्रथम समयके प्राप्त होने तक चालू रहता है । यहां पर एकगुणहानिका अध्वान यवमध्यके नीचे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है और ऊपर अन्तर्मुहर्तप्रमाण है । तथा नानागुणहानिशलाकायें आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं। परन्तु कितने ही आचार्य यहां पर एक भी द्विगुणवृद्धि का प्रमाण नहीं है ऐसा कहते हैं।
उसके बाद अन्तर्मुहूर्त जाकर बादर निगोद अपर्याप्त जीवोंका आयुबन्ध यवमध्य होता है । ६५५ ।
यहां पर जिस प्रकार सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवोंके आयु बन्धयवमध्यका कथन किया हैं उस प्रकार करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तके यवमध्यके जघन्य स्थानसे नीचे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान सरककर बादर निगोद अपर्याप्तकोंका प्रथम आयुबन्धस्थान होता है। तथा सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकोंके यवमध्यके अन्तिम स्थानसे ऊपर आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाकर बादर निगोद अपर्याप्तकोंके यवमध्यका अन्तिम स्थान होता है। इसी प्रकार यवमध्यदेशका भी कथन करना चाहिए ।
__उसके बाद अन्तर्मुहुर्त जाकर सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवोंका मरणयवमध्य होता है । ६५६ ।
उसके बाद अन्तर्मुहुर्त ऐसा कहने पर उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर क्षुल्लकभव
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