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५, ६, ६६० )
घणानुयोगद्दारे चूलिया
( ५१५
तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण सव्वजीवाणं णिव्वत्तीए अंतरं ॥ ६६० ॥ बादरणिगोदअपज्जत्त उक्कस्सणिव्वत्तिमेत्तमद्वाणं उपणपढमसमय पहुडि उवरि गंतूण सव्त्रबादरसुहुमणिगोदअपज्जत्ताणं णिव्वत्तीए अंतरं होदि । बादरणिगोदअपज्जत्त उक्कस्साउआदो उवरि सव्वेसिमपज्जत्ताणमुक्कस्साउअं णत्थि त्ति भणिदं होदि । कथमेदं णव्वदे ? 'सव्वजीवाणं णिव्वत्तीए अंतरं' इदि वयणादो । जदि पंचिदियअपज्जत्तादीणमुक्कस्साउअं बादरणिगोदअपज्जत्तउक्कस्साउआदो अहियं होज्ज तो 'सव्वजीवाणं निव्वत्तीए अंतरं ' ति वयणं णिरत्थयं जाएज्ज । ण, ण च एवं सुत्तस्स निरत्ययं विरोहादो । एदेण मन्त्रदे जहा सव्वेसिमपज्जत्ताणमुक्कस्साउअं सरिसं ति । एदस्स अंतरस्त प्रमाणमंतोमृहुत्तं कुदो णव्वदे ? अविरुद्धाइरियवयगादो । एत्तियमेत्तमंत रिण उवरि ओरालियसरीरस्स जहण्णणिव्यत्तिठ्ठाणं होदित्ति घेत्तव्वं । एगो बादरणिगोद अपज्जत्तसु दीहाउएसु जीवो उबवण्णो । अण्णेगो जीवो तम्हि चेव समए सुहुमणिगोदपज्जत्तएसु सव्वजहण्णाउएसु उबवण्णो । पुणो एसो सुहुमणिगोदपज्जत्तो जाव सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदो ण होदि ताव पुव्वं चेव बादरणिगोदअपज्जत्तो अंतोमुहुत्तमस्थि त्ति कालं काढूण भवांतरं गच्छदित्ति भणिदं होदि ।
उसके बाद अन्तर्मुहूर्त जाकर सब जीवोंकी निर्वृत्तिका अन्तर होता है । ६६० |
उत्पन्न होने के प्रथम समयसे लेकर बादर निगोद अपर्याप्तकोंके उत्कृष्ट निर्वृत्तिप्रमाण स्थान ऊपर जाकर बादर निगोद अपर्याप्त और सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवोंकी निर्वृत्तिका अन्तर होता है । बादर निगोद अपर्याप्तकों की उत्कृष्ट आयुसे ऊपर सब अपर्याप्तकोंकी उत्कृष्ट आयु नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान -- सब जीवोंकी निर्वृत्तिका अन्तर होता है इस वचनसे जाना जाता है । यदि पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त आदिको उत्कृष्ट आयु बादर निगोद अपर्याप्तकोंकी उत्कृष्ट आयु से अधिक होवे तो सब जीवोंकी निर्वृत्तिका अन्तर होता है यह वचन निरर्थक हो जाता । परन्तु इस प्रकार सूत्र निरर्थक नहीं हो सकता, क्योंकि, ऐसा होने में विरोध आता है । इससे जाना जाता है कि सब अपर्याप्तकोंकी उत्कृष्ट आयु समान होती है ।
शंका-- इस अन्तरका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान -- अविरुद्ध आचार्यवचनसे जाना जाता है ।
इतना अन्तर देकर ऊपर औदारिकशरीरका जघन्य निर्वृत्तिस्थान होता है ऐसा यहाँ पर ग्रहण करना चाहिए । दीर्घ आयुवाले बादर निगोद अपर्याप्तकों में एक जीव उत्पन्न हुआ । तथा अन्य एक जीव उसी समय सबसे जघन्य आयुवाले सूक्ष्म निगोद पर्याप्तकों में उत्पन्न हुआ । पुनः यह सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीव जबतक शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त नहीं होता है उसके पूर्व तक ही बादर निगोद अपर्याप्त सम्बन्धी अन्तर्मुहूर्त है इसलिए वह मरकर भवान्तरमें चला जाता है
* का० प्रती 'णिरत्ययविरोहादो' इति पाठ: 1
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