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पखंचागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, ६६१
तत्थ इमाणि पढमदाए आवासयाणि भवंति ॥६६॥
इमाणि उरि भणिस्समाणाणि पढमदाए पढमं चेव आवासयाणि होति । केसिमेदाणि पढमं चेव आवासयाणि? पज्जत्तजीवाणं । ण च अपज्जत्ताणं सरीरादीणं पज्जतिढाणाणि संभवंति, अपज्जत्तणामकम्मोदयपरतंत्ताणं पज्जत्तभावविरोहादो।
तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण तिण्णं सरीराणं णिवत्तिट्ठाणागि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥६६२॥
उप्पण्णपढमसमयप्पहडि बादरणिगोवअपज्जत उक्कस्साउअमेत्तं पुणो अण्णेगमंतोमुत्तमेत्तं च उवरि गंतूण ओरालिय-उन्विय-आहारसरीराणं णिव्वत्तिट्ठाणाणि आवलि० असंखे० भागमेत्ताणि चेव होंति वडिमाणि ऊणाणि वा ण होति त्ति भणिदं होदि। सरीरणिवत्तिट्टाणं गाम कि वृत्तं होदि ? सरीरपज्जत्तीए पज्जतिणिवत्ती सरीरणिव्वत्तिद्वाणं णाम । आहारपज्जत्तीए णिवत्तिढाणाणि किण्ण परूविदाणि ? ण, तेसि सरीरपज्जत्तीए अंतब्भावेण पुधपरूवणाकरणादो । तेसि तिग्णं सरीराणं
यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
वहां सर्व प्रथम ये आवश्यक होते हैं ।। ६६१ ॥ ये ऊपर कहे जानेवाले आवश्यक पढमदाए अर्थात् पहले ही होते हैं । शंका- किनके ये सर्व प्रथम आवश्यक होते हैं ?
समाधान- पर्याप्त जीवोंके होते हैं । यह कहना ठीक नहीं है कि अपर्याप्त जीवोंके शरीर आदिके पर्याप्तिस्थान सम्भव हैं, क्योंकि, वे अपर्याप्त नामकर्मके उदय के अधीन होते हैं, इसलिए उनके पर्याप्तभावके होने में विरोध है ।
उसके बाद अन्तर्मुहूर्त जाकर तीन शरीरोंके आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्वृत्तिस्थान होते हैं ।। ६६२ ।।
उत्पन्न होनेके प्रथम समयसे लेकर बादर निगोद अपर्याप्तकोंके उत्कृष्ट आयुप्रमाण तथा अन्य एक अन्तर्मुहुर्तप्रमाण ऊपर जाकर औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरके निर्वत्तिस्थान आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होते हैं। न वृद्धिको लिए होते हैं न कम ही होते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका- शरीरनिर्वत्तिस्थान इसका क्या तात्पर्य है ? समाधान- शरीरपर्याप्तिकी निर्वृत्तिका नाम शरीरनिर्वृत्तिस्थान है । शंका- आहारपर्याप्तिके निर्वत्तिस्थान क्यों नहीं कहे ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, उनका शरीरपर्याप्तिमें अन्तर्भाव हो जाने के कारण उनका अलगसे कथन नहीं किया है।
ता० प्रती 'पज्जत्तट्टाणाणि' इति पाठ।।9 अका.प्रत्योः 'पज्जत्ती णिव्यत्ती ' इति पाठः।
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