Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 551
________________ ५१८ ) छक्खंडागमे वग्गणा - खंड ( ५, ६ ६६४ एवं 0 तिसमउत्तरादिकमेण आवलियअसंखे० भागमेत्तआहारसरीरनिव्वत्तिट्ठाणेसु उप्पण्णेसु तत्थ वेडव्वियसरीरपज्जत्तीए सव्वजहग्गणिव्वत्तिद्वाणं होदि । तत्तो उवरि वे उब्वियआहारसरीराणं णिव्वत्तिद्वाणाणि समउत्तरादिकमेण आवलियाए असंखे ० मत्तमद्वाणं सह गच्छति । तदो उवरिमसमए ओरालिय सरीरपज्जत्तीए सव्वजहण्णवित्ताणं होदि । एत्तो पहुडि तिष्णं पि सरीराणं णिव्वत्तिट्ठाणेसु समउत्तरादिकमेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तेषु सह गदेसु आहारसरीरस्त सरीरपज्जत्तिfoodfornarari थक्कदि । पुणो जम्हि आहारसरीरस्स उक्कस्पणिव्वत्तिद्वाणं थक्कं तत्तो उवर समउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे ० भागमेत्तेसु ओरालिय-वेउव्वियसरीराणं णिव्वत्तिद्वाणेषु गदेसु वेडब्बियसरीरस्स उक्कस्स णिव्वत्तिद्वाणं * थक्कदि । पुणो जम्हि वेउव्वियसरीरस्स उक्कस्सणिव्यत्तिद्वाणं थक्कं । तत्तो हुडि उवरि समउत्तरादिकमेण आवलि० असंखे ० भागमेत्तनिव्वत्तिट्ठाणेसु गदेसु ओरालिपसरीरस्स उक्कस्सणिव्त्रत्तिद्वाणं थक्कदि । एवमेवेण कर्मणुप्पण्णतिपरीरसव्वति - द्वाणाणि पत्तेयमावलि असंखे० भागमेत्ताणि होतॄण जहाक्रमेण विसेसाहियाणि होंति । एदेण सुत्तेण कहिदत्थस्स गिण्णयद्वमुत्तरसुत्तं मणदि । एत्थ अप्पा बहुअं - - सव्वत्थोवाणि ओरालियसरीरस्स णिव्वत्तिट्ठाणाणि ।। ६६४॥ आदिके क्रमसे आहारकशरीरके आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्वृत्तिस्थानोंके उत्पन्न होने पर वहां वैक्रियिकशरीर पर्याप्तिका सबसे जघन्य निर्वृत्तिस्थान होता है । उसके आगे वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीर के निर्वृत्तिस्थान एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान तक साथ जाते हैं। उससे उपरिम समय में औदारिकशरीरपर्याप्तिका सबसे जघन्य निर्वृत्तिस्थान होता है। उससे आगे तीनों ही शरीरोंके निर्वृतिस्थानों के एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक एक साथ जानेपर आहारकशरीरका उत्कृष्ट शरीरपर्याप्तिनिर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है । पुनः जिस स्थान में आहारकशरीरका उत्कृष्ट निर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है उससे आगे एक समय अधिक आदिके क्रम से दारिकशरीर और वैक्रियिकशरीर के आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्वृत्तिस्थानोंके जाने पर वैक्रियिकशरीरका उत्कृष्ट स्थान श्रान्त होता है । पुनः जिस स्थान में क्रियिकशरीरका उत्कृष्ट निर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है उससे लेकर आगे एक समय अधिक आदिके क्रमसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्वृत्तिस्थानोंके जाने पर औदारिकशरीरका उत्कृष्ट निर्वृत्तिस्थान श्रान्त होता है । इस प्रकार इस क्रमसे उत्पन्न हुए तीनों शरीरोंके सब निर्वृत्तिस्थान प्रत्येक आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होकर भी क्रमसे विशेष अधिक होते हैं । अब इस सूत्रद्वारा कहे गये अर्थका निर्णय करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं--- इनके विषय में अल्पबहुत्व - औदारिक शरीरके निर्वृत्तिस्थान सबसे स्तोक ता० प्रती Jain Education International - उक्कट्ठाणं ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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