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सुहुमणिगोदपज्जत्ताणं
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एइंदियपज्जत्ताणं उक्कस्सबावीस सहसाणि
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गन्भोवक्कं तियाण मुक्कस्स- - तिणिपलिदोवमाणि
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सूक्ष्म निगोद पर्याप्त कोंकी
छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
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बादरणिगोदपज्जत्ताणं
औपपादिकोंकी उत्कृष्ट तेतीस सागर
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सम्मुच्छिमपज्जत्ताणमुक्कसपुचकोडी
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एवं बादर - सुहुमणिगोदअपज्जत्ताणं तेसि पज्जत्ताणं च चत्तारि संदिट्ठीओ विय ' जत्थेय मरइ जीवो तत्थ दु मरणं भवे अणंताणं । वक्कमदि जत्थ एयो वक्कमणं तत्थणंताणं ॥ एदीए गाहाए सूचिदणिव्वत्तिजवमज्झ-मरणजवमज्झआउ अबंधजवमज्झाणं तिष्णं सरीराणं पज्जत्तिणिव्वत्तिद्वाणादीणं परूवण च उत्तरगंथो आगदो
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उववादियाणमुक्कस्सतेत्तीस सागरोवमाणि
वादरनिगोद पर्याप्तकों के
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एकेन्द्रियपर्याप्तकों के सम्मूर्छन पर्याप्तकोंकी उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष
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उत्कृष्ट पूर्वकोटि
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(५, ६, ६४२
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पत्तेयसरीरपज्जत्ताणं
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प्रत्येक शरीरपर्याप्तकों के
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एस प्रकार बादर निगोद अपर्याप्त और सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त तथा उनके पर्याप्तकों की चार संदृष्टियाँ स्थापित कर 'जहाँ एक जीव मरता है वहाँ अनन्त जीवोंका मरण होता है और जहाँ एक जीव उत्पन्न होता है वहाँ अनन्त जीवों की उत्पत्ति होती है।' इस गाथा द्वारा सूचित हुए निर्वृत्तियवमध्य, मरणयवमध्य और आयुबन्ध यवमध्योंका तथा तीन शरीरोंके पर्याप्तिनिर्वृत्ति स्थानादिकों का कथन करनेके लिए आगेका ग्रन्थ आया है
गर्भजोंकी उत्कृष्ट तीन पल्य
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