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________________ ५०० ) 00000000000000 सुहुमणिगोदपज्जत्ताणं 000000000000 एइंदियपज्जत्ताणं उक्कस्सबावीस सहसाणि ०००००००००० गन्भोवक्कं तियाण मुक्कस्स- - तिणिपलिदोवमाणि 00000000000000 सूक्ष्म निगोद पर्याप्त कोंकी छक्खंडागमे वग्गणा - खंड ०००००००००००००० बादरणिगोदपज्जत्ताणं औपपादिकोंकी उत्कृष्ट तेतीस सागर ०००००००००००० सम्मुच्छिमपज्जत्ताणमुक्कसपुचकोडी Jain Education International एवं बादर - सुहुमणिगोदअपज्जत्ताणं तेसि पज्जत्ताणं च चत्तारि संदिट्ठीओ विय ' जत्थेय मरइ जीवो तत्थ दु मरणं भवे अणंताणं । वक्कमदि जत्थ एयो वक्कमणं तत्थणंताणं ॥ एदीए गाहाए सूचिदणिव्वत्तिजवमज्झ-मरणजवमज्झआउ अबंधजवमज्झाणं तिष्णं सरीराणं पज्जत्तिणिव्वत्तिद्वाणादीणं परूवण च उत्तरगंथो आगदो ०००००००००००००००० 000000 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0 उववादियाणमुक्कस्सतेत्तीस सागरोवमाणि वादरनिगोद पर्याप्तकों के 000000 0 0 0 0 0 0 एकेन्द्रियपर्याप्तकों के सम्मूर्छन पर्याप्तकोंकी उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष 000000 0 0 0 0 0 0 ***** उत्कृष्ट पूर्वकोटि 00000000000000000000000000000000 ००००० (५, ६, ६४२ ००००००००००००० पत्तेयसरीरपज्जत्ताणं ००००० For Private & Personal Use Only co००००००००००० प्रत्येक शरीरपर्याप्तकों के ०००००००००० एस प्रकार बादर निगोद अपर्याप्त और सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त तथा उनके पर्याप्तकों की चार संदृष्टियाँ स्थापित कर 'जहाँ एक जीव मरता है वहाँ अनन्त जीवोंका मरण होता है और जहाँ एक जीव उत्पन्न होता है वहाँ अनन्त जीवों की उत्पत्ति होती है।' इस गाथा द्वारा सूचित हुए निर्वृत्तियवमध्य, मरणयवमध्य और आयुबन्ध यवमध्योंका तथा तीन शरीरोंके पर्याप्तिनिर्वृत्ति स्थानादिकों का कथन करनेके लिए आगेका ग्रन्थ आया है गर्भजोंकी उत्कृष्ट तीन पल्य www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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