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५, ६, ६११ )
बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया
( ४७९
जहण्णपदेण सांतरणिरंतरवक्कमणकालो विसेसाहिओ ॥६०७॥ सुगम । उक्कस्सपदेण सांतरणिरंतरवक्कमणकालो विसेसाहिओ ।६०८५ एवं पि सुगमं । उक्कस्सयं वक्कमणंतरमसंखेज्जगुणं ।। ६०९॥
एगपुलवियाए सरीरे वा उप्पज्जमाणजीवाणं आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तंतरकंडएसु जमक्कस्सं वक्कमणंतरं तमसंखेज्जगणं । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो ।
अवक्कमणकालविसेसो असंखेज्जगुणो ॥ ६१० ॥
को अवक्कमणकालो ? अंतरं । आवलियाए असंखेज्जविभागमेत्तजहण्णंतरकंडएसु उक्कस्संतरकंडएहितो सोहिदेसु सुद्धसेसवक्कमणंतरविसेसो । तमावलियाए असंखेज्जदिभागगुणं त्ति भणिदं होदि ।
पबंधणकालविसेसो विसेसाहिओ ।। ६११ ॥
जघन्य पदकी अपेक्षा सान्तर-निरन्तर उपक्रमण काल विशेष अधिक है । ६०७ ।
___ यह सूत्र सुगम है। उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा सान्तर निरन्तर उपक्रमण काल विशेष अधिक है। ६०८ ।
यह सूत्र भी सुगम है। उत्कृष्ट उपक्रमण अंतर असंख्यातगुणा है । ६०९ ।
एक पुलवि या एक शरीर में उत्पन्न होनेवाले जीवोंके जो आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अन्तरकाण्डक होते हैं उनमें जो उत्कृष्ट उत्पन्न होनेका अन्तर है वह असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। अप्रक्रमण कालविशेष असंख्यातगुणा है । ६१० ।
शंका-- अप्रक्रमणकाल किसे कहते हैं ? समाधान-- अन्तरको अप्रक्रमणकाल कहते है।
आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जघन्य अन्तर काण्डकोंको उत्कृष्ट अन्तर काण्डकोंमेंसे घटा देनेपर शेष अप्रक्रमण अन्तर विशेष होता है। वह आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणा है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
प्रबन्धनकालविशेष विशेष अधिक है। ६११ ।
अ० प्रती ' असंखे० भागमेत्तकालाणं जहण्णत रकंदएसु ' इति पाठः ।
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