Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 514
________________ ( ४८१ ५, ६, ६२१ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया जीवअप्पाबहुए त्ति ॥ ६१६ ॥ __जं जीवअप्पाबहुअं भणिदं तमेगकंडयं जाणाकंडयाणि च अस्सिऊण वत्तइस्सामो। तत्थ ताव एगकंडयमस्सिऊण वुच्चदे-- सम्वत्थोवा चरिमसमए वक्कमति जीवा ।।६१७॥ पढमकंडयस्स चरिमसमए जे उप्पज्जमाणा जीवा ते अणंता होदूण थोवा होंति, असंखेज्जगणहीणकमेण पढमसमयप्पहुडि णिरंतरमुप्पत्तीदो। अपढम-अचरिमसमएस वक्कमति जीवा असंखेज्जगुणा [६१८॥ पढमकंडयस्स पढम-चरिमसमएसु उप्पण्णजीवे मोत्तण सेसमज्झिमसमएसु वक्कमिदजीवा अपढम-अचरिमसमएसु वक्क मिदजीवा होंति । ते असंखेज्जगुणा । को गणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । अपढमसमए वक्कमति जीवा विसेसाहिया ॥६१९।। केत्तियमेत्तेण ? पढमकंडयस्स चरिमसमए वक्कमिदजीवमेत्तेण । पढमसमए वक्कमंति जीवा असंखेज्जगुणा ॥६२०।। को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जविभागो । अचरिमसमएम वक्कमति जीवा विसेसाहिया ॥६२१॥ जीव अल्पबहुत्वका प्रकरण है ॥६१६।। जो जीव अल्पबहुत्व कहा है उसे एककाण्डक और नाना काण्डकोंका आश्रय लेकर बतलावें गे। उनमेंसे पहले एक काण्डकका आश्रय लेकर कहते हैं अन्तिम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव सबसे थोडे है ।।६१७ ॥ प्रथम काण्डकके अन्तिम समयमें जो उत्पन्न हुए जीव हैं वे अनन्त होकर भी स्तोक हैं, क्योंकि, प्रथम समयसे लेकर वे निरन्तर असंख्यातगुणे हीन क्रमसे उत्पन्न होते हैं। अप्रथम-अचरम समयोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव असंख्यातगणे हैं ॥६१८॥ प्रथम काण्डकके प्रथम समय और अन्तिम समयमें उत्पन्न जीवोंको छोड कर शेष बीचके समयोंमें उत्पन्न हुए जीव अप्रथम-अचरम समयों में उत्पन्न हुए जीव होते हैं। वे असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। अप्रथम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव विशेष अधिक हैं ॥६१९॥ कितने अधिक हैं ? प्रथम काण्डकके अन्तिम समयमें उत्पन्न हुए जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं। प्रथम समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव असंख्यातगणे हैं ॥६२०॥ गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। अचरम समयोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव विशेष अधिक हैं ।।६२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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