Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 509
________________ ४७६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ५९४ कालविसेसो णाम । तत्तियमेत्तेण अहियमिति भणिदं होदि । जहण्णपदेण सम्वत्थोवो सांतरवक्कमण सवजहण्ण कालो ॥५९४॥ बिदियादिवक्कमणकंडयाणमावलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणं सवजहण्णकालकलावो सांतरवक्कमणजहण्णकालो णाम । सो थोवो । उक्कस्सपदेण उक्कस्सओ सांतरसमयवक्कमणकालो विसेसाहिओ ॥ ५९५ ॥ बिदियाधिवक्कमणकंडयाणमावलियाए असंखेज्जविभागमेत्ताणं उक्कस्सकालकलावो उक्कस्सगो सांतरवक्कमणकालो णाम । सो वितेसाहिओ। केत्तियमेत्तेण ? आवलियाए असंखेज्जविभागमेत्तेण । जहण्णपदेण जहण्णगो णिरंतरवक्कमणकालो असंखेज्जगुणो ॥ ५९६ ।। पढमवक्कमणकंडयकालो जहण्णओ वि अस्थि उक्कस्सओ वि अस्थि । तत्थ जो जहण्णओ णिरंतरवक्कमणकालो सो असंखेज्जगणो । को गुणगारो? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। पर जो शेष रहता है वह उपक्रमण कालविशेष है । उतना अधिक है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। जघन्य पदकी अपेक्षा सांतर उपक्रमण सबसें जघन्य काल सबसे स्तोक है ।५९४। ___ आवलिके असंख्यातवें भाप्रमाण द्वितीय आदि उपक्रमण काण्डकों के सबसे जघन्य कालकलापकी सान्तर उपक्रमण जघन्य काल संज्ञा है। वह स्तोक है। उष्कृष्ट पदको अपेक्षा उत्कृष्ट सांतर समय उपक्रमणकाल विशेष अधिक है।५९५। आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण द्वितीय आदि उपक्रमण काण्डकोंके उत्कृष्ट कालकलापकी उत्कृष्ट सान्तर उपक्रमण काल संज्ञा है। वह विशेष अधिक है। कितना अधिक है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अधिक है। जघन्य पदकी अपेक्षा जघन्य निरन्तर उपक्रमण काल असंख्यातगुणा है ।५९६। प्रथम उपक्रमण काण्डक काल जघन्य भी है और उत्कृष्ट भी हैं। उसमें जो जघन्य निरन्तर उपक्रमण काल है वह असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। 8 ता. प्रतौ ' सांतर ( समय ) वक्कमण-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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