________________
५, ६, ५२७ ) बधणाणुयोगद्दारे सरीरविस्सासुवचयपरूवणा । जाव अणंतविस्सासुवचएहि उचिवअणंतागंतपदेसियवग्गणाए दवे ति । सव्वस्थ एत्थ भागहारो अभवसिध्दिएहि अणतगुणो सिध्दाणमणंतभागमेत्तो। सो किमवट्टिदो अणवट्टिदो त्ति ण णव्वदे, गुरूवदेसाभावादो।।
तदो अंगुलस्स असंखेज्जदिभागं गंतूण तेसि पंचविहा हाणीअणंतभागहाणी असंखेज्जभागहाणी संखेज्जभागहाणी संखेज्जगुणहाणी असंखेज्जगुणहाणी ॥ ५२७ ।।
एवमगंतभागहाणीए चेवर अणंताणि ढाणाणि गंतूण तदो अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तदव्ववियप्पेसु गदेसु जो विही तप्परूवणट्टमेदं सुत्तमागदं । तत्थ अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तवव्ववियप्पे सेसे सलागाणं पंच हाणीओ होति । तत्थ एक्केक्किस्से हाणीए अद्धाणमंगलस्स असंखेज्जविभागो। तं कुदो णव्वदे ? अंगुलस्स असंखे. ज्जदिभागं गंतूण पंच हाणीओ होंति त्ति वयणादो। अणंतभागहाणीए अंगुलस्स असंखेज्जदिभागं णिरुध्वट्ठाणादो गंतूण सलागाणं असंखेज्जभागहाणी होदि। तदो पहुडि असंखेज्जभागहाणीए अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तद्धाणं णिरंतरं गंतूण संखेज्ज
विस्रसोपचयोंसे उपचित अनन्तानन्तप्रदेशी वर्गणाके द्रव्योंके प्राप्त होने तक जानना चाहिए । यहां पर सर्वत्र भागहार अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण है। वह क्या अवस्थित है या अनवस्थित है यह ज्ञात नहीं है, क्योंकि, इस विषय में गुरुका उपदेश नहीं पाया जाता।
उसके बाद अंगलके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाकर उनकी पाँच प्रकार की हानि होती है- अनन्तभागहानि, असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि ॥ ५२७ ॥
इस प्रकार अनन्तभागहानिके द्वारा ही अनन्त स्थान जाकर उसके बाद अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्यविकल्पोंके जाने पर जो विधि है उसका कथन करनेके लिए यह सूत्र आया है। वहां अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्यविकल्पोंके शेष रहने पर शलाकाओंकी पाँच हानियाँ होती हैं। उनमें से एक एक हानिका अध्वान अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
शंका--- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-- अगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाकर पाँच हानियाँ होती हैं इस वचनसे जाना जाता है।
विवक्षित स्थानसे अनन्तभागहानिद्वारा अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाकर शलाकाओंकी असंख्यातभागहानि होती है। वहाँसे लेकर असंख्यातभागहानिद्वारा अंगुलके
४ अ० प्रती -भागहाणी चेव ' इति पाठः।
अ० का० प्रत्यो) ! दववियप्पेस जो विही ' इति पाठः । Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org