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५, ६. ५८६ ) बंधणाणुयोगद्दारे चूलिया
( ४७१ तम्हि चेव सरीरे पढमसमयउप्पण्णजीवेहितो बिदियसमए उप्पज्जमाणजीवा असंखेज्जगुणहीणा । को भागहारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो।
तदियसमए असंखेज्जगुणहीणा वक्कमंति । ५८४ । ___ तत्थेव सरीरे बिदियसमए वक्तजीवेहितो तदियसमए उप्पज्जंतजीवा असं-- खेज्जगुणहीणा । भागहारो सव्वत्थ आवलियाए असंखेज्जविभागो।
एवं जाव असंखेज्जगुणहीणाए सेडीए गिरंतरं वक्कमंति जाव उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो । ५८५ ।
एत्थतण आवलियाए असंखेज्जविभागस्स पमाणमावलियपढमवग्गमलस्स असंखेज्जविभागो । कुदो एवं जयदे ? अविरुद्धाइरियवयणादो। एदेण सुत्तेण पढमकंदयपरूवणा कदा।
तदो एक्को वा दो वा तिणि वा समए अंतरं काऊण णिरंतरं वक्कमंति जाव उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जविभागो। ५८६ ।
एक्को वा दो वा तिणि वा समए जावक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जविभागो अंतरं काऊणे ति पदसंबंधो कायन्वो। आवलियाए असंखेज्जविभागसद्दो अंतरकाले
उसी शरीर में प्रथम समयमें उत्पन्न हुए जीवोंसे दूसरे समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव असंख्यातगुणे हीन होते हैं। भागहार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण भागहार है ।
तीसरे समयमें असंख्यातगणे हीन निगोद जीव उत्पन्न होते हैं । ५८४ ।
उसी शरीरमें दूसरे समय में उत्पन्न होनेवाले जीवोंसे तीसरे समयमें उत्पन्न होनेवाले जीव असंख्यातगुणे हीन होते हैं। सर्वत्र भागहार आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है।।
इस प्रकार आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक निरन्तर असंख्यातगुण हीन श्रेणिरूपसे निगोद जीव उत्पन्न होते हैं ।। ५८५ ॥
यहाँ पर आवलिके असंख्यातवें भागका प्रमाण आवलिके प्रथम वर्गमलका असंख्यातवाँ भाग हैं।
शंका-- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-- अविरुद्ध आचार्यवचनसे जाना जाता है। इस सूत्रके द्वारा प्रथम काण्डककी प्ररूपणा की।
उसके बाद एक, दो और तीन समयसे लेकर आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कालका अन्तर करके आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक निरन्तर निगोद जीव उत्पन्न होते हैं ।। ५८६ ॥
एक, दो और तीन समयसे लेकर उत्कृष्टसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कालका अन्तर करके ऐसा यहाँ पदसम्बन्ध करना चाहिए ।
* ता० प्रती ' अंतरकालो (ले ) ' इति पाठ। 1
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