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चओ थोवो ॥ ५५३ ॥
चरिमसमयछदुमत्यस्स सव्वजहणियाए सरीरोगाहणाए वट्टमाणस्स जहणिया बादरणिगोदवग्गणा होदि त्ति एत्थ पदसंबंधो कायव्वो । एदेण जहण्णबादरणिगोदवग्गणसामित्तपरूवणदुवारेण जहण्णविस्सासुवचयस्स सामी परुविदो । चरिमसमयछदुमत्थाणं गहणं किमट्ठ कीरदे? ण, तत्थ गुणसेडिमरणेण मदावसिद्वाणमावलियाए असंखे० भागमेत्तपुलवियाणं गहणट्ठे तक्करणादो । असंखेज्जगुणाए सेडीए कम्मपदेसाणं तत्थतणविस्तासुवचयाणं च गलणट्ठे पि चरिमसमयछदुमत्थग्गहणं कोरदे । सव्वजहणियाए सरीरोगाहणाए त्ति वृत्ते अद्धट्ठरयणिपमाणोगाहणाए गहणं कायव्वं । किमठ्ठे तग्गहणं कीरदे ? यो विस्सासुवचयगहणट्ठे । रस- रुहिर मांस-मेदट्ठि मज्ज सुक्काणि विस्सासुवचओ णाम । ते च थोवा जहण्णोगाहणाए चेव होंति ण महंतीए, सेसि बहुत्ते विणा ओगाहणाए बहुत्तविरोहादो । तत्थोवत्तं पि बादरणिगोदाणं थोवत्तविहाणट्ठ । तम्हा अधुट्ठरयणिपमाणुस्सेहो विविहोववासेहि ज्झडिदणिस्सेसरोमाहियमंसो ज्झाणावूरणेण थोवीकयबादरणिगोदपुल विकलावो चरिमसमयखीणकसाओ जहण्णबादरणिगोदवग्गणाए जहण विस्सासुवचयाणं सामी होदित्ति सिद्धं । जघन्य बादरनिगोद वर्गणाका जघन्य विस्रसोपचय स्तोक है ।। ५५३ ।।
शरीरकी सबसे जघन्य अवगाहनामें विद्यमान अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थ जीवके जघन्य बादर्शनगोदवर्गणा होती है इस प्रकार यहाँ पर पदसम्बन्ध करना चाहिए। इसके आश्रय से जघन्य बादरनिगोदवर्गणा के स्वामित्वकी प्ररूपणाद्वारा जघन्य विस्रसोपचयका स्वामी कहा है । शंका -- अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थोंका ग्रहण किसलिए करते हैं ?
समाधान -- नहीं, क्योंकि, वहाँ पर गुणश्रेणि मरणसे मरनेके बाद बची हुई आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलवियोंके ग्रहण करनेके लिए तथा असंख्यात गुणित श्रेणिरूप से कर्मप्रदेशोंकी और तत्रस्थ विस्रसोपचयोंकी निर्जरा करनेके लिए अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थोंका ग्रहण करते हैं ।
छखंडागमे वग्गणा-खंड
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( ५,६, ५५३
सबसे जघन्य शरीरकी अवगाहनामें ऐसा कहने पर साढे तीन हाथप्रमाण अवगाहनाका ग्रहण करना चाहिए ।
शंका-- उसका ग्रहण किसलिए करते हैं ?
समाधान -- स्तोक विस्रसोपचयका ग्रहण करने के लिए ।
रस, रुधिर, मांस, मेदा, अस्थि मज्जा और शुक्र इनकी विस्रसोपचय संज्ञा है । वे जघन्य अवगाहनामें स्तोक ही होते हैं, बडी अवगाहनामें नहीं, क्योंकि, उनका बहुत्व हुए बिना अवगाहनाका बहुत्व होने में विरोध है । वह स्तोकपना भी बादरनिगोदके स्तोकपनेका विधान करने के लिए वहाँ ग्रहण किया है। इसलिए मनुष्य के मानसे जिसका साढे तीन अरत्निप्रमाण उत्सेध है, नानाप्रकारके उपवासों द्वारा जिसने समस्त रोम और अधिक मांसको गला डाला है और ध्यानसमाधि द्वारा जिसने बादरनिगोद पुलविकलापको स्तोक कर दिया है ऐसा अन्तिम समयवर्ती क्षीणकषाय जीव जघन्य बादरनिगोद वर्गणाके जघन्य विस्रसोपचयोंका स्वामी होता
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