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५, ६, ५३८ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरविस्सासुवचयपरूवणा ( ४४९
तदो अंगुलस्स असंखेज्जविभागं गंतूण तेसि चउन्विहा हाणीअसंखेज्जभागहाणी संखेज्जभागहाणी संखेज्जगुणहाणी असंखेज्जगुणहाणी ॥ ५३७ ॥
असंखेज्जभागहाणिअद्धाणस्स असंखे० भागे अंगलस्स असंखे० भागे सेसे जो विही तस्स परूवणमिदं सुत्तमागयं । अप्पिदाणादो असंखे० भागहाणीए अंगुलस्स असंखे० भागमेत्तद्धाणमुबरि गंतूण संखेज्जभागहाणी होदि । तदो संखेज्जभागहाणीए अंगलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तद्धाणमुवरि गंतूण संखेज्जगणहाणी होदि । पुणो संखेज्जगणहाणीए अंगुलस्स असंखे० भागमेत्तमद्धाणमुवरि गंतूण असंखेज्जगुणहाणी होदि । तदो असंखे० गणहाणीए अंगुलस्स असंखे० भागमेत्तद्धाणं गंतूण असंखे० गुणहाणी समप्पदि, उवरि दव्वाभावादो। अंगुलस्त असंखे० भागं गंतूण चउविहा हाणी होदि त्ति सुत्तादो च णव्वदे जहा जीवादो अवेदाणं चेव पोग्गलाणमेसा परूवणा ति, जीवसहिदाणं ओरालियसरीरादीणमंगुलस्स असंखे० भागमेत्तकालद्विदीए अभावादो।
एवं चदुण्णं सरीराणं ॥ ५३८ ॥ जहा ओरालियसरीरस्स परूवणा कदा तहा चदुण्णं सरीराणं परूवणा
उससे अंगलके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाकर उनकी चार प्रकारको हानि होती है-- असंख्यातमागहानि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि ।। ५३७ ।।
____ असंख्यातभागहानि अध्वानके असंख्यातवें भागके अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण शेष रहने पर जो विधि है उसका कथन करने के लिए यह सूत्र आया है । विवक्षित स्थानसे असंख्यातभागहानिके अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान ऊपर जानेपर संख्यातभागहानि होती है। पुनः संख्यातभागहानिके अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान ऊपर जानेपर संख्यातगणहानि होती है। पुनः संख्यातगुणहानिके अंगलके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान ऊपर जानेपर असंख्यातगुणहानि होती है। पुनः असंख्यातगुणहानिके अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जानेपर असंख्यातगुणहानि समाप्त होती है, क्योंकि, इससे आगे द्रव्यका अभाव है। अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाकर चार प्रकारकी हानि होती है इस सूत्रसे जाना जाता है कि जीवसे अवेदरूप पुद्गलोंकी ही यह प्ररूपणा है, क्योंकि, जीवसहित औदारिकशरीर आदिकी स्थिति अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक नहीं पायी जाती।
इसी प्रकार चार शरीरोंको प्ररूपणा करनी चाहिए ॥ ५३८ ॥
जिस प्रकार औदारिकशरीरकी प्ररूपणा की है उसी प्रकार चार शरीरोंकी प्ररूपणा 8 ता० प्रती 'सखेज्जगुण ( भाग ) हाणी ' इति पाठः ।
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