Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 490
________________ ५, ६, ५५२ ) बंणाणुयोगद्दारे सरीरविस्सा सुवचयपरूवणा ( ४५७ उक्कस्सओ विस्तासुवचओ अनंतगुणो । तस्सेव उक्कस्सयस्स जहण्णपदे जहण्णओ विसासुवचओ अनंतगुणो । तस्सेव उक्कस्सयस्स उक्कस्सपदे उक्कस्सओ विस्सासुवचओ अनंतगुणो । कम्मइयसरीरस्स जहण्णयस्त जहण्णपदे जहग्णओ विस्तासुवचओ अनंतगुणो । तस्सेव जहण्णयस्स उवकस्सपदे उक्कस्सओ विस्सासुनचओ अणंतगुणो | तस्सेव उक्कस्तयस्स जहण्णपदे जहण्णओ विस्सासुवचओ अनंतगुणो । तस्सेव उक्कस्सयस्स उक्कस्सपदे उक्कस्सओ विस्सासुवचओ अनंतगुणो । सव्वत्थ गुणगारो सजीवेहि अनंतगुणो । एदमप्पाबहुगं बाहिरवग्गणाए पुधभूदं ति काऊण के वि आइरिया जीवसंबद्ध पंचण्णं सरीराणं विस्सासुवचयस्सुवरि परूवेंति तण्ण घडदे, जहण्णत्तेय सरीरवग्गणादो उक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणाए अनंतगुणत्तप्पसंगादो। उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणादो जहण्गसुहुमणिगोढवग्गणाए अनंतगुणहीणत्तप्पसंगादो च । तम्हा सव्वत्थोवो ओरालियसरीरस्स जहण्णयस्स जहण्णपदे जहण्णओ विस्सासुवचओ अनंतगुणो । तस्सेव उक्कस्सओ विस्तासुवचओ असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पलिदोवस्त असंखेज्जदिभागो । तस्सेव उक्कस्सयस्स जहण्णओ विस्सासुवचओ असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । तस्पेव उक्कस्तओ विस्सासुवचओ असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पलिदोवमस्त असंखेज्जदिभागो । वेउविवयसरीरस्स जहण्णयस्स जहण्णओ विस्सासुवच मो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? जघन्यका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विस्रसोपचय अनन्तगुणा है । उसीके उत्कृष्टका जघन्य पद जघन्य विस्रसोपचय अनन्तगुणा है । उसी उत्कृष्टका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विस्रसोपचय अनंतगुणा है । जघन्य कार्मणशरीरका जघन्य पद में जघन्य विस्रसोपचय अनन्तगुणा है । उसी जघन्यका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विस्रसोपचय अनन्तगुणा है । उसीके उत्कृष्टका जघन्य पद में जघन्य विसोपचय अनन्तगुणा है । उसी उत्कृष्टका उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट विस्रसोपचय अनंतगुण है । सर्वत्र गुणकार सब जीवोंसे अनन्तगुणा है । यह अल्पबहुत्व बाह्य वर्गणासे पृथग्भूत है ऐसा मानकर कितने ही आचार्य जीवसम्बद्ध पांच शरीरोंके विस्रसोपचयके ऊपर कथन करते हैं परन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि, ऐसा माननेपर जघन्य प्रत्येकशरीस्वर्गणासे उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरवर्गणा अनन्तगुणे होने का प्रसंग प्राप्त होता है तथा उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणा से जघन्य सूक्ष्मनिगोदवर्गणा के अनन्तगुणे हीन होने का प्रसंग प्राप्त होता है । इसलिए जघन्य औदारिकशरीरका जघन्य पद में जघन्य विस्रसोपचय सबसे स्तोक होकर भी अनन्तगुणा है । उसीका उत्कृष्ट विस्रसोपचय असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । उसीके उत्कृष्टका जघन्य विस्रसोपचय असंख्यातगुणा है | गुणकार क्या है ? गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । उसी उत्कृष्टका उत्कृष्ट विस्रसोपचय असंख्या - तगुणा हैं । गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । वैक्रियिकशरीरके ० अ० का० प्रत्यो: ' जहण्णो विस्सासुवचओ अनंतगुणो । उक्कस्सयस्स अ० प्रती । उक्कस्सयस्स उक्कस्सओ' इति पाठा For Private & Personal Use Only Jain Education International इति पाठा । www.jainelibrary.org

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