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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
कम्मइयसरीरस्स अविभागपडिच्छेदा अणंतगुणा ।। ५१९ ।। ___को गुणगारो ? सव्वजोवेहि अणंतगणो। एवं छहि अणुयोगद्दारेहि बंधणगुणस्सेव परूवणा कदा । तत्थतणविस्तासुवचयाणं किण्ण परूवणा कीरदे? ण, तक्कारणपरूवणाए कदाए तेसि पि परूवणा कदा चेव होदि ति तेसि पुध परूवणा ण कीरदे। तम्हा सेसि विस्तासुवचयाणं पि एवं चेव अप्पाबहुअं परूवेदव्वं । ण च अविभागपडिच्छेदमेत्तविस्सासुवचएहि होदव्वं चेवे ति णियमो अस्थि, नावश्यं कारणानि कार्यवन्ति-भवन्तीति न्यायात् । एवं सरीरविस्सासुवचयपरूवणा समत्ता।
विस्सासुवचयपरूवणदाए एक्केक्कम्हि जीवपदेसे केवडिया विस्सासुवचया उवचिदा ॥ ५२० ॥ ____एसा विस्तासुवचयपरूवणा पुणरत्ता, सरीरविस्सासुवचयपरूवणाए चेव विस्तासुवचयाणं परविदत्तादो। तदो एसा ण परूवेदव्वा ति? ण एस दोसो, सरीरभदपंचण्णं सरीराणं विस्सासुवचयस्स सरीरविस्सासुवचयपरूवणाए परूवणा कदा । संपहि एदीए विस्सासुवचयपरूवणाए जीवेण मुक्काणं पंचण्णं सरीराणं पोग्गलाण
उनसे कार्मणशरीरके अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं ॥ ५१९ ।। गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है ।
शका-- इस प्रकार छह अनुयोगद्वारोंका आश्रय लेकर बन्धनगुणकी ही प्ररूपणा की है। वहां रहनेवाले विनसोपचयोंकी प्ररूपणा क्यों नहीं करते ?
समाधान-- नहीं, क्योंकि, उनके कारणकी प्ररूपणा करने पर उनकी भी प्ररूपणा की गई के समान होती है, इसलिए उनकी अलगसे प्ररूपणा नहीं करते हैं। इसलिए उन विस्रसोपचयोंकी अपेक्षा भी यही अल्पबहुत्व कहना चाहिए। और विस्रसोपचय अविभागप्रतिच्छेदप्रमाण होने ही चाहिए ऐसा कोई नियम नहीं है, क्योंकि, कारण नियमसे कार्यवाले नहीं होते हैं ऐसा न्याय है ।
इस प्रकार शरीरविनसोपचयप्ररूपणा समाप्त हुई । विस्रसोपच यप्ररूपणाको अपेक्षा एक एक जीवप्रदेश पर कितने विस्रसोपचय उपचित हैं ५२० ॥
शंका-- यह विस्रसोपचयप्ररूपण। पुनरुक्त है, क्योंकि, शरीरविनसोपचय प्ररूपणाके समय ही विस्रसोपचयोंका कथन कर आये हैं, इसलिए इसका कथन नहीं करना चाहिए ?
समाधान -- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, शरीरभूत पाँच शरीरोंके विस्रसोपचयका शरीरविनसोपचयप्ररूपणाके समय कथन किया है। अब इस विस्रसोपचयप्ररूपणाके द्वारा जिन्होंने औदयिक भावको नहीं छोडा है और जो समस्त लोकाकाशके प्रदेशोंको व्याप्त कर
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