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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, ५१४
धण्णाणं तुलादो तगरादीणं दंडादो जोयणादीणं परिच्छेदुवलंभादो। पंचण्णं सरीराणं बंधणगुणो वि छेदणा णाम, पगाए छिज्जमाणतादो अविमागपडिच्छेदपमाणेण छिज्जमागत्तादो वा । पदेतो वि छेदणा होदि, उड्डाहोमज्झादिपदेसेहि सम्बदवाण छेददंसणादो। कुडारादीहि अडइरुक्खादिखंडणं वल्लरिच्छेदो णाम । परमाणुगदएगादिदव्वसंखाए अस दवाणं संखावगमो अणुच्छेदो णाम । अथवा पोग्गलागासादीणं णिविभागच्छेदो अणच्छेदो णाम । दोहि वि तडेहि णदीपमाणपरिच्छेदो अथवा दव्वाणं सयमेव छेदो तडच्छेदो णाम । ण च पदेसच्छदे * एसो पददि, तस्त बुद्धिकज्जत्तादो। ण वल्लरिच्छेदे पददि, तस्त पउरुसेयत्तादो। णाणुच्छेदे पददि, परमाणपज्जत्तच्छेदाभावादो। रत्तीए इंदाउह-धमके उआदीणमुप्पत्ती पडिमारोहो भमिकंप-रुहिरवरिसादओ च उप्पाइया छेदणा णाम, एतैरुत्पातैः राष्ट्रभड्ग नृपपातादितर्कणात्। मदि सुद-ओहि-मणपज्जव-केवलगाणेहि छद्दव्वावगमो पण्णभावच्छेदणा णाम । एदासु दससु छेदणासु णव छेदणाओ अवणिय सरीरबंधणगुणच्छेदणाए गहणं कदं, अण्णच्छेदणेहि एत्थ कज्जाभावादो। ओरालियसरीरस्सेव अविभागपडिच्छेदादि
देखा जाता है। यह असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, कुडव से धान्योंका, तुलासे तगर आदिका और दण्डसे योजन आदिका परिज्ञान होता हुआ उपलब्ध होता है । पाँच शरीरोंका बन्धनगुण भी छेदना है, क्योंकि, उसका प्रज्ञाद्वारा छेद किया जाता है। या अविभागप्रतिच्छेदके प्रमाणसे उसका छेद किया जाता है। प्रदेश भी छेदना होती है, क्योंकि, ऊर्ध्वप्रदेश, अधःप्रदेश और मध्यप्रदेश आदि प्रदेशोंके द्वारा सब द्रव्योंका छेद देखा जाता है । कूठार आदिके द्वारा जङ्गलके वृक्ष आदिका खण्ड करना वल्लरिछेदना कहलाती है। परमाणुगत एक आदि द्रव्योंकी संख्याद्वारा अन्य द्रव्योंकी संख्याका ज्ञान होना अणुच्छेदना कहलाती है। अथवा पुद्गल और आकाश आदिके निविभाग छदका नाम अणुच्छेदना है। दोनों हो तटोंके द्वारा नदीके परिमाणका परिच्छेद करना अथवा द्रव्योंका स्वयं ही छेद होना तटच्छेदना है। इसका प्रदेशछेदमें अन्तर्भाव नहीं होता, क्योंकि, वह बद्धिका कार्य है। वल्लरिच्छेदमें भी अन्तर्भाव नहीं होता, क्योंकि, वह पौरुषेय होता है। अणच्छदमें भी अन्तर्भाव नहीं होता, क्योंकि, इसका परमाणु पर्यन्त छेद नहीं होता। रात्रिमें इन्द्रधनुष और धुमकेतु जादिकी उत्पत्ति तथा प्रतिमारोध, भूमिकम्प और रुधिरकी वर्षा आदि उत्पातछेदना है, क्योंकि, इन उत्पातोंके द्वारा राष्ट्रभङ्ग और राजाका पतन आदिका अनुमान किया जाता है। मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययजान और केवलज्ञानके द्वारा छह द्रव्योंका ज्ञान होना प्रज्ञाभावछेदना है। यहाँ इन दस छेदनाओंमें से नौ छेदनाओंको छोडकर शरीरबन्धनगुणछेदनाका ग्रहण किया है ; क्योंकि, अन्य छेदनाओंसे यहां कोई प्रयोजन नहीं है।
शंका- यहां पर औदारिकशरीरके ही अविभागप्रतिच्छेद आदिका कथन किया है, शेष
ता० प्रती 'परमाणगम (द)एगादिदव्वसंखाए अ. का. प्रत्योः 'परमाणुगमएगादिदव्वसंखाए' इति पाठः1ता० प्रती वि तदी ( तडे ) हि 'अ. का. प्रत्योः ' वि तदीहि ' इति पाठः ।
* अ० प्रती 'पदेसे छेदे ' इति पाठः । अ० का० प्रत्यो ' बुद्धि कयत्ताटो' इति पाठः ।
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