Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 468
________________ ५, ६, ५१४ ) बधणाणुयोगद्दारे सरीरविस्सासुवत्रयपरूवणा ( ४३५ सरीरबंधणगणपण्णच्छेदणणिप्पण्णा । अणंताणंतपोग्गलसमवाओ सरीरं । तेसि पोग्गलाणं जेण गुणेण परोप्परं बंधो होदि सो बंधणगणो णाम । तस्स गुणस्स पण्णच्छेदणेण बुद्धिच्छेदणेण णिप्पण्णा पुवुत्ता अविभागपडिच्छेदा होंति, गणेसु अण्णच्छेदाणमसंभवादो । पण्णच्छेदणे त्ति वयणेण सेसणवण्णं छेदणाणं पडिसेहो कदो । ताओ सेसणवण्णाओ छेदणाओ त्ति वुत्ते तासि परूवणटुमत्तरसुत्तं भणदि - छेदणा पुण दसविहा ॥ ५१३ ॥ छिद्यते पृथक क्रियतेऽनेनेति छेदना । सा च दशविधा भवति संक्षेपण । तासि परूवणमुत्तरगाहामुत्तं मणदि णाम ट्ठवणा दवियं सरीरबंधणगुणप्पदेसा य । वल्लरि अणुत्तडेसु य उप्पइया पण्णभावे य ॥ ५१४ ॥ तत्थ सचित्त-अचित्तदव्वाणि अण्णेहितो पुध काऊण गण्णा जाणावेदि त्ति णामच्छेदणा । टुवणा दुविहा सब्भावासब्मावट्ठवणाभेदेण । सा वि छेदणा होदि, ताए अण्णेसि दवाणं सरूवावगमादो । दवियं णाम उप्पाद-टिदि-भंगलक्खणं । तं पि छेदणा होदि, दव्वदो दव्वंतरस्स परिच्छेददंसणादो । ण च एसो असिद्धो, कुडवादो कह आये हैं। वे किससे निष्पन्न होते हैं ऐसा पूछने पर वे शरीरबन्धके कारणभत गुणोंका प्रज्ञासे छेद करने पर उत्पन्न होते हैं यह कहा है। 'अनन्तानन्त पुद्गलोंके समवायका नाम शरीर है | उन पुद्गलोंका जिस गुण के कारण परस्पर बन्ध होता है उसका नाम बन्धनगुण है। उस गुणका प्रज्ञासे छेद करने के कारण अर्थात् बुद्धिसे छेद करनेके कारण निष्पन्न हुए पूर्वोक्त अविभागप्रतिच्छेद होते हैं, क्योंकि, गुणों में अन्य किसी द्वारा छेदोंका होना सम्भव नहीं है। 'प्रज्ञाच्छेदन ' इस वचन द्वारा शेष नो प्रकारके छेदोंका निषेध किया है। वे नौ प्रकारके छेद कौनसे हैं ऐसा पूछने पर उनका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं--- परन्तु छेदना दस प्रकारकी है ।। ५१३ ॥ छिद्यते अर्थात् जिसके द्वारा पृयक किया जाता है उसकी छेदना संज्ञा है। वह संक्षेप में दस प्रकारकी होती है । उसका कथन करने के लिए आगेका गाथासूत्र कहते हैं--- नामछेदना, स्थापनाछेदना, द्रव्यछेदना, शरीरबन्धनगुणछेदना, प्रदेशछेदना, वल्लरिछेदना, अणुछेदना, तटछेदना, उत्पातछेदना और प्रज्ञाभावछेदना इसप्रकार छेदना दस प्रकारको है ॥ ५१४ ॥ उनमें से सचित्त और अचित्त द्रव्योंको अन्य द्रव्योंसे पृथक करके जो संज्ञाका ज्ञान कराती है वह नामछेदना है। स्थापना दो प्रकारकी है-सद्धावस्थापना और असद्धावस्थापना वह भी छेदना है, क्योंकि, उस द्वारा अन्य द्रव्योंके स्वरूपका ज्ञान होता है । जो उत्पाद, स्थिति और व्ययलक्षण वाला है वह द्रव्य कहलाता है। वह भी छेदना है. क्योंकि, द्रव्यके दूसरे द्रव्यका ज्ञान होता हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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