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छसंडागले वग्गणा-खर्ड
( ५, ६, ५२३
पच्चएहि जहा पंचसरूसेण परिणमंति तहा विस्सासुवचया वि कि तत्थ टिदा चेव बंधमागच्छंति आहो णागच्छंति ति पुच्छिदे तण्णिण्णयथमिदं सुत्तमागयं । ते पंचसरीरक्खंधा सवलोगागदेहि विस्तासुवचएहि बध्दा होति । सबलोगागासपदेसट्टिया पोग्गला समीरणादिवसेण गदिपरिणामेण वा आगंतूण तेहि सह बंधमागच्छंति ति भणिदं होदि । अहवा एदस्स सुत्तस्स अण्णहा अवयारो कीरदे । तं जहा- ते पंचसरीरपोग्गला जीवमुक्का होदण कत्थ अच्छंति त्ति वृत्ते तप्पदेसपरूवणमिदं सुत्तमागदं। सव्वलोगगदा णाम सव्वागासपदेसा, तेहि विरहिदआगासाभावादो। तेहि सव्वागासपदेसेहि ते बध्दा सह गदा होति । पंचसरीरपोग्गला जीवमक्कसमए चेव सव्वागासमावरिदूण अच्छंति ति भणिदं होदि। संपहि तत्थ तेसिमवढाणसरूवपरूवण?मुत्तरसुत्तमागदं--
तेसि चउविवहा हाणी-दबहाणो खेतहाणी कालहाणी भावहाणी चेदि ॥ ५२३ ॥
तेसि जीवादो विष्फट्टिय सव्वलोगं गदाणं चउविहाए हाणीए परूवणं कस्सामो, अग्णहा तस्विसणिण्णयाणुववत्तीदो ।
मिथ्यात्व आदि कारणोंसे जिस प्रकार पाँच रूपसे परिणमन करते हैं उसी प्रकार वहाँ पर स्थित हुए ही विस्रसोपचय भी क्या बन्धको प्राप्त होते हैं या बन्धको नहीं प्राप्त होते हैं, इस प्रकार इस बातका निर्णय करने के लिए यह सूत्र आया है।
वे पाँचों शरीरोंके स्कन्ध समस्त लोकमेंसे आये हुए विस्रसोपचयोंके द्वारा बद्ध होते हैं। सब लोकाकाशके प्रदेशोंपर स्थित हुए पुद्गल समीरण आदिके वशसे या गतिरूप परिणामके कारण आकर उनके साथ सम्बन्धको प्राप्त होते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अथवा इस सूत्रका अन्य प्रकारसे अवतार कहते हैं। यथा-- वे पाँच शरीरोंके पुद्गल जीवसे मुक्त होकर कहाँ पर रहते हैं ऐसा पूछने पर उनके रहने के प्रदेशका कथन करने के लिए यह सूत्र आया है। 'सबलोगगदा' इस पदका अर्थ सब लोकाकाशके प्रदेश हैं. क्योंकि, उनसे रहित आकाशका अभाव है । आकाशके उन सब प्रदेशोंके साथ वे बद्ध हैं अर्थात् उनके साथ रहते हैं। पाँचों शरीरोंके पुद्गल जीवसे मुक्त होने के समयमें ही समस्त आकाशको व्याप्त कर रहते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब वहाँ उनके अवस्थानके स्वरूपका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र आया है ---
उनकी चार प्रकारको हानि होती है-- द्रव्यहानि, क्षेत्रहानि, कालहानि और भावहानि ॥ ५२३ ।।
जीवसे अलग हो कर सब लोकको प्राप्त हुए उन पुद्गलोंका चार प्रकारकी हानिद्वारा कथन करते हैं, अन्यथा उस विषयका निर्णय नहीं हो सकता।
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