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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
गालिय अंतोमुहुत्तपमाण मेयंताणवडिजोगसमयपबद्धेसु गहिवेसु तेजासरीरस्स जहण्णदव्वं होदि ति वत्तव्वं । णिल्लेवणढाणाणं पमाणमुक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखे० भागो त्ति भणिदं तेण कम्मट्रिदीए असंखेज्जभागमेत्तसमयपबद्धाणं संचएण सामित्तचरिमसमए होदव्वमिदि ? ण, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि णिल्लेवणट्टाणाणि होति त्ति कम्मस्स परूविदत्तादो। ण च कम्म णोकम्माणमेयत्तं, कारण-कज्जाणमेयत्तविरोहादो। तेजासरीरणोकम्मस्स जहणदिदी एइंदियजीवसमासेसु सुहमणिगोदअपज्जत्तएयंताणवद्धिकालादो थोवे त्ति कुदो जव्वदे ? अण्णदरस्से ति वयणादो। अण्णहा विदकम्मंसियलक्खणेण सुहमणिगोदेसु हिडिदूण आगदो त्ति भणेज्ज ? ण च एवं, तदो णवदे जहाणदिदी एयंताणुवडिकालादो थोवे ति।
तव्वविरित्तमजहणं ॥ ४९३ ॥
सुगमं ।
जहण्णपदेण कम्मइयसरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गं कस्स ॥४९४॥ सुगम। अण्णदरस्स जीवो सहमणिगोदजीवेमु पलिदोवमस्स असंखे
प्रबद्धोंके ग्रहण करने पर तेजसशरीरका जघन्य द्रव्य होता है ऐसा यहाँ कहना चाहिए ।
शंका-- निर्लेपनस्थानोंका उत्कृष्ट प्रमाण पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है ऐसा कहा है, इसलिए स्वामित्वके अन्तिम समयमें कर्मस्थिति के असंख्यातवें भागप्रमाण समयप्रबद्धोंका संचय होना चाहिए ।
समाधान-- नहीं, क्योंकि, पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण निर्लेपस्थान होते है यह कर्मकी अपेक्षा कथन किया है। और कर्म तथा नोकमं एक नहीं है, क्योंकि, कारण और कार्यको एक होनेमें विरोध आता है ।
शंका-- एकेन्द्रिय जीवसमासोंमें तेजसशरीर नोकर्मकी जघन्य स्थिति सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तके एकान्तानुवद्धिकालसे स्तोक है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-- 'अन्यतरके ' इस वचनसे जाना जाता है। अन्यथा क्षपितकर्माशिकलक्षणसे सूक्ष्म निगोद जीवोंमें घूमकर आया हुआ जीव ऐसा कहते । परन्तु ऐसा नहीं कहा है। इससे जाना जाता है कि जघन्य स्थिति एकान्तानुवृद्धिके कालसे स्तोक है ।
उससे व्यतिरिक्त अजघन्य प्रदेशाग्न है ।। ४९३ ।। यह सूत्र सुगम है। जघन्य पदकी अपेक्षा कार्मणशरीरके जघन्य प्रदेशाग्रका स्वामी कौन है । ४९४। यह सूत्र सुगम हैं। अन्यतर जो जीव सूक्ष्म निगोद जीवोंमें पल्यका असंख्यातवां भाग कम
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