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१०२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
( ५, ६, ९३. सरीरपरमाणूणं जहण्णविस्ससुवचया एवं चेव वड्ढावेदव्या जावप्पणो उवकस्सविस्ससुवचयपमाणं पत्ता त्ति । एवं बड्ढाविदे खीणकसायदुचरिमसमयख विदकम्मंसियखविदघोलमाणलक्खणेणागदसव्वजीवाणं ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीराणि विस्ससुवचएहि उक्कस्सभावं गदाणि ।
पुणो विस्ससुवचयएसु वड्ढी णस्थि त्ति अण्णो जीवो विस्ससुवचयसहिदेगोरालियपरमाणुणा पुत्वत्तोरालियसरीरमभहियं काऊण अच्छिदो ताधे सव्वजोवेहि अगंतगुणमेत्तट्टाणाणि अंतरिदूणेदं ढाणमुप्पज्जदि । पुणो णिरंतरमिच्छामो ति एगपरमाणुविस्ससुवचयपमाणेण पुव्वुत्तोरालियसरीरपुंजादो परिहोणेण पविल्लविस्ससुवचयसहिदएगपरमाणुणा वड्डाविदे गिरंतरं होदूण अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि। चरिमफड्डयसमुप्पण्णढाणाणि पेक्खिदूण पुण पुणरुतं । पुणो एगविस्ससुवचयपरमाणुम्हि वड्डिदे अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । दोसु परमाणुस वढिदेसु बिदियमपुणरुत्तट्ठाण होदि। एवं वड्ढावेदव्वं जाव अप्पप्पणो पुव्वमणीकदा सव्वजोवेहि अणंतगुणमेत्ता विस्ससुवचयपरमाण ओरालियसरीरविस्ससुवचयएसु वढिदा ति । पुणो पच्छा वड्डिदपरमाणू विस्ससुवचएहि उक्कस्सो कायदो। एवं कदे एत्तियाणि चेव अपुणरुत्तढाणाणि लद्धाणि होति । पुणो एदेण कमेण रिस्ससुवचयसहिदमेगेगमोरालियपरमाणुं पवेसिय०२ वड्ढावेदव्वं जाव ओरालियसरीरपुंजम्मि उक्कस्सविस्ससुवचयसहिया अभवसिद्धिएहि अणंतगुणा सिद्धाणमणंतभागमेत्ता परमाणू वढिदा त्ति । उत्कृष्ट विस्रसोपचयके प्रमाणको प्राप्त होने तक बढाना चाहिए । इस प्रकार बढाने पर क्षीणकषायके द्विचरम समय सम्बन्धी क्षपित कर्माशिक और क्षपित घोलमान विधिसे आये हुए सब जीवोंके औदारिक, तेजस और कार्मणशरीर अपने विस्रसोपचय रूपसे वृद्धिको प्राप्त होते हैं।
पुनः विस्रसोपचयोंमें वृद्धि नहीं होती, इसलिए एक अन्य जीव लो जो विस्रसोपचयके साथ औदारिकशरीरके एक परमाणुसे पूर्वोक्त औदारिकशरीरको अधिक करके स्थित है तब सब जीवोंसे अनन्तगुणे स्थानोंका अन्तर देकर यह स्थान उत्पन्न होता है। पुनः निरन्तर स्थान लाना चाहते हैं इसलिए पूर्वोक्त औदारिकशरीर पुजमेंसे एक परमाणु विस्रसोपचय प्रमाणसे होन पूर्वोक्त विस्रसोपचय सहित एक परमाणुकी वृद्धि करने पर निरन्तर रूपसे अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। किन्तु अन्तिम स्पर्धक में उत्पन्न हुए स्थानोंको देखते हुए वह पुनरुक्त होता है । पुनः एक विस्रसोपचय परमाणुकी वृद्धि होने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। दो परमाणुओंको वृद्धि होने पर दूसरा अपुनरुक्त रथ न होता है। इस प्रकार अपने अपने पहले कम किए गए सब जीवोंसे अनन्तगुणे विस्रसोपचय परमाणुओंके औदारिकशरीर विस्रसोपचयोंमें बढ़ने तक बढाते जाना चाहिए । पुनः पीछे बढाए हुए परमाणुओंको विस्रसोपचयोंसे उत्कष्ट करना चाहिए। ऐसा करने पर इतने ही अपुनरुक्त स्थान उपलब्ध होते हैं। पून: इस क्रमसे औदारिकशरीर पुजमें उत्कष्ट विस्रसोपचयके साथ अभव्योंसे अनन्तगण और सिद्धोंके अनन्तवें भागमात्र परमाणुओंकी वृद्धि होने तक विनसोपच सहित एक एक औदारिक शरीर Fता० प्रती · एगपरमाणुणा वड्डिह वड्डविदे ' इति पाठः ।
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