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५, ६, ३६६ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ (१८१
सम्वत्थोवं आहारसरीरस्स चरिमगुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं ॥३६॥
कारणं सुगमं । अपढम-अचरिमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं संखेज्जगुणं ।३६२। को गुण० ? सगअण्णोण्णभत्थरासीए चदुरूवूणाए अद्धं ।
अपढमेमु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥३६३॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? चरिमगुणहाणिदव्वमेत्तो।
पढमे गुणहाणिट्ठाणंतरे पदेसग्गं विसेसाहियं ॥३६४।। के० विसेसो ? चरिमगुणहाणिव्व्वमेत्तो।
अचरिमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥३६५॥
के० विसेसो ? चरिमगुणहाणिदब्वेणूणबिवियादिगणहाणिवव्वमेत्तो । सव्वेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥३६६।।
के० विसेसो ? चरिमगुणहाणिवव्वमेत्तो । एवमक्कस्सपदप्पाबहुअं समत्तं ।
आहारकशरीरके अन्तिम गुणहानिस्थानान्तरों में प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है।३६१॥
कारण सुगम है। उससे अप्रथम-अचरम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र संख्यातगणा है ३६२।
गुणकार क्या है ? चार कम अपनी अन्योन्याभ्यस्त राशिका अर्धभागप्रमाण गुणकार है ( ६४ - ४ = ६०; ६.२- ३०, १०० x ३० - ३०००)
उससे अप्रथम गणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ।।३६३॥ विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम गुणहानिका जितना द्रव्य है उतना है। उससे प्रथम गणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ।।३६४॥ . विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम गुणहानिका जितना द्रव्य है उतना है । उससे अचरम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥३६५।।
विशेषका प्रमाण कितना है ? द्वितीयादि गुणहानियोंके द्रव्यमें से अन्तिम गुणहानिका द्रव्य कम कर देने पर जो शेष रहे उतना है ।
उससे सब गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥३६६।। विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम गुणहानिका जितना द्रव्य है उतना है।
इस प्रकार उत्कृष्टपद अल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
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