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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, ४२९
ण, उक्कस्सजोगेण विसमय-तिसमय-चदुसमयं मोत्तण सम्वत्थ भवद्विदम्मि बहुकालपरिणमणसत्तीए अभावादो। एवं भवसामासियसुत्तं । तेग एत्थ भवम्मि जाव संभवो अस्थि ताव उक्कस्सजोगं चेव गदो त्ति गेमिहयव्वं । एत्य संकिलेसावासो किण्ण परूविदो? कालगदसमाणउजुगदीए पइज्जमाणाए कसायवड्डि-हाणीहि कज्जाभावादो संकिलेसे संते ओलंबणकरणकरणेण बहुणोकम्मपोग्गलाणं गलणप्पसंगादो ध।
तस्स चरिमसमयतब्भवत्थस्स तस्स ओरालियसरीरस्स उक्कस्सय पदेसग्गं ।। ४२९॥
तिरिक्खो मणुस्सो वा दाणेण दाणाणमोदेण वा तिपलिदोवमाउद्विदिए सु उत्तरकुरुदेवकुरुमणस्सेसु आउअंबंधिदूण एवमेदेण कमेण कालगदसमाणो* उजुगदीए देवकुरु-उत्तरकुरुवेसु उववज्जिय पढमसमयआहारएण पढमसमयतब्भवत्थेण उक्कस्सुववादजोगेण आहारिदूण तमाहारिदणोकम्मपदेसं तिष्णं पलिदोवमाणं पढमसमयमादि कादूण जाव चरिमसमओ ति ताव गोवच्छागारेण णिसिंचिय तदो बिदियसमयप्पहुडि उक्कस्सेगंताणुवड्डिजोगेण वड्डमाणो अंतोमत्तकालमसंखेज्जगुणाए सेडीए णोकम्मपदेसमाहारिदूण तिण्णं पलिदोवमाणं णिसिंचमाणो सव्वलहुं पज्जत्तीओ
समाधान-नहीं, क्योंकि, उत्कृष्ट योगके साथ दो समय, तीन समय और चार समयको छोडकर सर्वत्र भवस्थितिके भीतर बहुत काल तक परिण मन करनेको शक्तिका अभाव है ।
___यह भवदेशामर्षक सूत्र है, इसलिए इस भवमें जब तक सम्भव है तब तक उत्कृष्ट योगको ही प्राप्त हुआ ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए।
शंका-यहां पर संक्लेशावासका कथन क्यों नहीं किया है ?
समाधान- क्योंकि, मर कर ऋजुगतिके प्राप्त होने पर कषायकी वृद्धि और हानिसे कोई प्रयोजन नहीं है और संक्लेशके सद्भावमें अवलम्बनाकरणके करनेसे बहुत नोकर्मपुद्गलोंके गलनेका प्रसंग प्राप्त होता है, इसलिए यहां संक्लेशावासका ग्रहण नहीं किया है ।
अन्तिम समयमें तद्भवस्थ हुए उस जीवके औदारिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र होता है ॥४२९ ।।
किसी तिर्यञ्च और मनुष्यने दान या दानके अनुमोदनसे तीन पल्यकी स्थिति वाले देवकुरु और उत्तरकुरुके मनुष्योंकी आयुका बन्ध किया । इस प्रकार इस क्रमसे मर कर ऋजुगतिसे देवकुरु और उत्तरकुरुमें उत्पन्न हुआ। पुनः प्रथम समय में आहारक और प्रथम समयमें तद्भवस्थ होकर उत्कृष्ट उपपाद योगसे आहार ग्रहण कर उन ग्रहण किये गये नोकर्मप्रदेशोंको तीन पल्थके प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समय तक गोपुच्छाकारसे निक्षिप्त किया । फिर द्वितीय समयसे लेकर उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योगसे वृद्धिको प्राप्त होता हुआ अन्तर्मुहूर्त काल तक असंख्यातगुणित श्रेणिरूपसे नोकर्मप्रदेशोंको ग्रहण कर तीन पल्यप्रमाण काल में निक्षिप्त किया । पुनः
9 ता० का० प्रत्योः ‘णीदो? उक्कस्सजोगेण इति पाठः । म०प्रतिपाठोऽयम् | ता० प्रती बंधिदूण एदेण कालगदसमागो अ० का० प्रत्यो बंधिदण एव मेदेण कालगदसमाणो इति पाठ।।
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