Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 457
________________ ४२४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खं ( ५, ६, ४८२ विदिय-तदिय-चउत्थसमयतब्भवत्थपढमसमयआहारयाणं पडिसेहटें पढमसमयतब्भवत्थस्से त्ति भणिदं किमळं विग्गहगदीए पडिसेहो कीरदे ? ण विग्गहगदीए आगदाणं सव्वजहण्णउववादजोगासंभवादो । तं कुदो णव्वदे? पढमसमयतब्भवत्थस्से त्ति सुत्तण्णहाणुववत्तींदो । उववादजोगा असंखेज्जवियप्पा अस्थि तेसि पडिसेहळें जहण्णजोगिस्से ति भणिदं । तन्वदिरित्तमजहणं ॥४८२ ॥ एवम्हादो वदिरित्तजहण्णदव्वं तमजहणं त्ति घेत्तव्वं । जहण्णपदेण वेउव्वियसरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गं कस्स ॥४८३॥ सुगम । अण्णदरस्स देव-णेरइयस्स असण्णिपच्छायदस्स ।। ४८४ ॥ असणिपच्छायदणिहेसो किमळं कीरदे? असण्णीहितो आगदस्सेव जहण्णववादजोगो होदि ण अण्णस्से त्ति कीरदे । लिए द्वितीय आदि समयोंमें आहारक होने का प्रतिषेध किया है । द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ समयमें तद्भवस्थ होकर प्रथम समयवर्ती आहारक होता है उसका निषेध करने के लिए 'प्रथम समयमें तद्भवस्थ हुआ ' पद कहा है शंका- विग्रहगतिका प्रतिषेध किसलिए करते है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, विग्रहगतिसे आये हुए जीवोंके सबसे जघन्य उपपादयोगका होना असम्भव है। शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समधान- प्रथम समयमें तद्भवस्थ हुआ यह सूत्र वचन अन्यथा बन नहीं सकता है । इससे जाना जाता है कि विग्रहगतिसे आये हुए जीवोंके जधन्य उपपादयोग नहीं होता। उपपादयोगके असंख्यात विकल्प हैं उनका प्रतिषेध करने के लिए 'जघन्य योगवालेके' यह वचन कहा है। उससे व्यतिरिक्त अजघन्य प्रदेशाग्र होता है ।। ४८२ ।। इससे व्यतिरिक्त जो जघन्य द्रव्य है वह अजघन्य है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। जघन्य पदकी अपेक्षा वैक्रियिकशरीरके जघन्य प्रदेशाग्रका स्वामी कौन है ।४८३॥ यह सूत्र सुगम है। असंज्ञियोंमेंसे आकर उत्पन्न हुआ जो अन्यतर देव और नारकी जीव है। ४८४ । शंका- 'असंज्ञियोंमेंसे आकर उत्पन्न हुआ' पदका निर्देश किसलिए करते हैं ? समाधान- असंज्ञियोंमेंसे आये हुए जीवके ही जघन्य उपपादयोग होता है अन्यके नहीं इसलिए उक्त पदका निर्देश करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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