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५, ६, ४८१ )
योगद्वारे सरीरपरूवणाए पदमीमांसा
( ४२३
जहणपदेण ओरालियसरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गं कस्स | ४६९ |
सुगमं
अण्णदरस्स हुमणिगोदजीव अपज्जत्तयस्स । ४८० |
ओगाहणादीहि पदेसग्गस्स संखाकयभेदो णत्थि त्ति अग्नदरग्गहणं कदं । बादर --- गिगोदादिजीव पडिसेहठ्ठे सुहुमणिगोदजीवणिद्देसो कदो । पज्जत्तपडिसेहट्ठ अपज्जतकदं । किमट्ठे सुहुमणिगोद अपज्जतेसु चेत्र जहण्णसामित्तं दिज्जदे ? ण, सुहुमणिगोद अपज्जत्तजहण्ण उववादजोगादो इदरेसि जहण्ण उववादजोगाणमसंखेज्जगुणत्तुवलंभ/ दो । तस्सेव सुहुमणिगोद अपज्जत्तयस्स विसेसपरूवणट्ठ उत्तरसुत्तं भणदिपढमसमय आहारस्स पढमसमय तब्भवत्थस्स जहण्णजोगिस्स तस्स ओरालिय सरीरस्स जहण्णयं पदेसगं । ४८१ ।
बिदियादिसमय आहार पडिसेहट्टं पढमसमय आहारयस्स ति वृत्तं । किमहं तप्पडिसेहो कीरदे ? एयंता वडिआदिजोगेहि आगच्छमाण बहुपोग्गलप डिसेहट्ठ
जघन्य पदकी अपेक्षा औदारिकशरीर के जघन्य प्रदेशाग्र का स्वामी कौन है । ४७९ ।
यह सूत्र सुगम I
जो अन्यतर सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीव है । ४८०
T
अवगाहना आदिकी अपेक्षा प्रदेशाग्रका संख्याकृत भेद नहीं है, इसलिए 'अन्यतर' पदका ग्रहण किया है । बादर निगोद आदि जीवोंका प्रतिषेध करनेके लिए 'सूक्ष्म निगोद जींव' पदका निर्देश किया है । पर्याप्तकोंका प्रतिषेध करनेके लिए 'अपर्याप्त' पदका ग्रहण किया है ।
शंका - सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकों में ही जघन्य स्वामित्व किसलिए दिया जाता
समाधान- नहीं, क्योंकि, सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकोंके जघन्य उपपाद योगसे दूसरे जीवोंके जघन्य उपपादयोग असंख्यातगुणे उपलब्ध होते हैं । अब उसी सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवके विशेषणोंका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं -
प्रथम समय में आहारक हुआ और प्रथम समयमें तद्भवस्थ हुआ जघन्य योगसे युक्त वह जीव औदारिकशरीरके जघन्य प्रदेशाग्रका स्वामी है । ४८१
द्वितीय आदि समयों में आहारक होनेका निषेध करनेके लिए 'प्रथम समय में आहारक हुआ' पद कहा है ।
शंका - द्वितीय आदि समयोंमें आहारक होनेका प्रतिषेध किसलिए करते हैं ? समाधान - एकान्तानुवृद्धि आदि योगोंके द्वारा आनेवाले बहुत पुद्गलों का निषेध करने के...
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