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५, ६, ४७४ ) बंषणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदमीमांसा (४२१
चरिम-दुचरिमसमए उक्कस्सजोगं गदो ।। ४७३ ॥
तस्स चरिमसमयतब्भवत्थस्स तस्स तेजइयसरीरस्स* उक्कस्सयं पदेसग्गं ।। ४७४ ।।
संपहि एत्थ उवसंहारे भण्णमाणे संचयाणगमो भागहारपमाणाणगमो समयपबद्ध. पमाणाणुगमो चेदि एदाणि तिणि अणुयोगद्दाराणि होति । एदेहि तिहि अणुयोगद्दा. रेहि उवसंहारो उच्चदे । तं जहा- कम्मट्टिदिपढमसमए जं बद्धं तेजइयसरीरणोकम्मपदेसगं तं सामित्तचरिमसमए* चरिमगोवच्छ मेत्तमत्थि । जं कम्मट्टिदिबिदियसमए पबद्धं णोकम्मपदेसग्गं तं सामित्तचरिमसमए चरिम-दुचरिमगोवुच्छमेत्तमस्थि । एवं यवं जाव कम्मटिदिचरिमसमओ त्ति । एवं संचयाणुगमो गदो । छावटिसागरोवमाणं पढमसमए जं बद्धं तेजइयसरीरणोकम्मपदेसग्गं तम्मि अंगुलस्स असंखे० भागेण खंडिदे तत्थ एगखंडमेतं कम्मट्टिदिचरिमसमए अस्थि । तेजइयसरीरकम्मट्ठि दिअंतरणाणागुणहाणिसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थे कदे असंखेज्जाणि पलिदोवमाणि उप्पज्जति । पुणो एदेण अण्णोण्णब्भत्थरासिणा असंखेज्जपलिदोवमपढपवग्गमूलमेत्तदिवड्डगुणहाणोसु गुणिदासु भागहारो उप्पज्जदि त्ति भणिदं
चरम और द्विवरम समयमें उत्कृष्ट योगको प्राप्त हुआ ।। ४७३ ॥
चरम समयवर्ती तद्भवस्थ वह जीव तैजसशरीरके उत्कृष्ट प्रदेशाग्रका स्वामी है ॥ ४७४ ॥
अब यहां पर उपसंहारका कथन करने पर संचयानुगम, भागहारप्रमाणानुगम और समयप्रबद्धप्रमाणानुगम ये तीन अनुयोगद्वार होते हैं। इन तीन अनुयोगद्वारोंका अवलम्बन लेकर उपसंहारका कथन करते हैं। यथा- कर्मस्थितिके प्रथम समयमें जो तैजसशरीर नोकर्मप्रदेशाग्र बन्धको प्राप्त हआ है, स्वामित्वके अन्तिम समयमें वह अन्तिम गोपूच्छमात्र शेष रहता है। जो कर्मस्थितिके द्वितीय समयमें नोकर्मप्रदेशाग्र बन्धको प्राप्त हुआ है वह स्वामित्वके अंतिम समयमें चरम और द्विचरम गोपुच्छ मात्र शेष रहता है । इस प्रकार कर्म स्थितिके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिए। इस प्रकार संचयानुगमका कथन समाप्त हुआ । छयासठ सागरके प्रथम सनयमें जो तैजसशरीर नोकर्मप्रदेशाग्र बन्धको प्राप्त हुआ है उसमें अगुलके असंख्यातवें भाग का भाग देने पर एक खण्डमात्र कर्म स्थितिके अन्तिम समय में शेष रहता है। तैजसशरीर नोकमंस्थिति अन्तर नानागुणहानि शलाकाओंका विरलन कर और विरलन राशि के प्रत्येक एकको दूना कर परस्पर गुणा करने पर असंख्यात पल्य उत्पन्न होते हैं। पुन: इस अन्योन्याभ्यस्त राशिसे असंख्यात पल्योंके प्रथमवर्गमूलप्रमाण डेढ गुणहानियोंके गुणित करने पर भागहार
*ता. प्रतो ' तस्स पत्तेय (तेजइय) सरीरस्स' अ.का. प्रत्यो 'तस्स पत्तेयसरीरस्स' इति पाठः । * प्रतिषु ' सामितं चरिमगमए ' इति पाठ। ता० प्रती -सागरोवमाणि (ण) इति पाठः ।
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