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५, ६, ४६७ )
योगद्दारे सरीरपरूवणाए पदममता
( ४१९
कमेण आउअमणुपालइत्ता त्ति भणिदं । बिदियपुव्वकोडिचरिमसमए तेत्तीस सागरोवमाणि समार्णिय णेरइएसु तेत्तीसं सागरोवमट्टिदिएसु उववण्णो त्ति भणिदं होदि । संपहि तिसु वि अपज्जत्तद्धासु आवासयपरूवणट्ठ उत्तरसुतं भणदि ।
तेणेव पढमसमयआहारएण पढमसमयतब्भवत्थेण उक्कस्सजोगेण आहारिदो ॥। ४६४ ॥
एदेहि तीहि वि सुत्तेहि उववादजोगमाहप्पं जाणाविदं । विग्गहगदीए किरण उपाइदो ? पज्जत्तकालवड्डावणट्ठ ण उप्पाइदो
उक्कस्सियाए वड्ढीए वड्ढिो || ४६५ ॥
अंतोमुहुत्तेण सव्वलहुं सव्वाहि पज्जतीहि पज्जत्तयदों ||४६६ ॥ तत्थ य भवट्टिदि तेत्तीससागरोवमाणि आउअमणुपालइत्ता | ४६७॥ उक्कस्तदव्वं करेदित्ति भणिदं होदि । सेसं सुगमं । दोसु पुग्वकोडीसु दोसु णिरयाउएसु च आवासयपरूवणट्ठ उत्तरमुत्तं भणदि -
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लिए ' उसी क्रमसे आयुका पालन कर यह पद कहा है । दूसरी पूर्वकोटिके अन्तिम समय में तेतीस सागर समाप्त करके तेतीस सागरकी आयुवाले नारकियोंम उत्पन्न हुआ यह उक्त कथन का तात्पर्य है । अब तीनों अपर्याप्त कालोंमें आवश्यकों का कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
प्रथम समय में आहारक हुए और प्रथम समयमें तद्भवस्थ हुए उसी जीवने उत्कृष्ट योगसे आहारको ग्रहण किया || ४६४ ॥
इन तीनों ही सूत्रोंके द्वारा उपपाद योगके माहात्म्यका ज्ञान कराया गया है ।
शंका - विग्रहगति में क्यों नहीं उत्पन्न कराया है ?
समाधान - पर्याप्त काल बढाने के लिए नहीं उत्पन्न कराया है ।
उत्कृष्ट वृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त हुआ ।। ४६५
सबसे अल्प अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ ।। ४६६ ॥
वहां तेतीस सागर आयुप्रमाण मवस्थितिका पालन कर ॥ ४६७ ।
वह उत्कृष्ट द्रव्यको करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । शेष दो पूर्वकोटियोंमें और दो नारक आयुओं में आवश्यकों का कथन सूत्र कहते हैं
ता० प्रती । आउअम गुपालइत्ता त्ति भणिदं होदि ' इति पाठः ।
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कथन सुगम है। अब
करनेके लिए आगेका
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