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५, ६, ४२२ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदमीमांसा (४०५ समाणिय परिणामजोगम्मि णिवदिय सुत्तवृत्तविहाणेण आगंतूण चरिमसमयट्टिदो उक्कस्सदव्वसामी होदि त्ति भावत्थो । निदिओ तस्से ति णिद्देसो ण णिप्फलो, तस्स चरिमसमयतब्भवत्थस्स जीवस्स जमोरालियसरीरं तस्सुक्कस्सयं पदेसग्गमिदि संबंधे कीरमाणे सहलत्तुवलंभादो ।
एत्थ संचयाणुगमो भागहारपमाणाणगमो समयपबद्धपमाणाणुगमो चेदि एदेहि तीहि अणुयोगद्दारेहि उवसंहारो उच्चदे- तत्थ संचयाणुगमस्स परूवणा पमाणमप्पा. बहुअं चेदि तिणि अणुयोगद्दाराणि । परूवणदाए तिण्णं पलिदोवमाणं पढ़मसमयसंचिददव्वं सामित्तचरिमसमए अस्थि । विदियसमयसंचितवध्वं पि अस्थि । एवं णेयत्वं जाव तिण्णं पलिदोवमाणं चरिमसमयसंचिददव्वं ति । परूवणा गदा । तिण्णं पलिदोवमाणं पढमसमयसंचिददव्वं केत्तियमथि त्ति भणिदे एगसमयपबद्धस्स चरिमगोपुच्छमेत्तमत्थि । जं बिदियसमयसंचिददव्वं तं सामित्तसमए चरिम दुचरिमगोवुच्छमेत्तमथि । जं तदियसमए संचिददव्वं तं सामित्तसमए चरिम दुचिरम-तिचरिमगोवुच्छमेत्तमत्थि । एवं गंतूण कम्मटिदिचरिमसमयसंचिददव्वमेगसमयपबद्धमेत्तमत्थिा पमाणं गदं । अप्पाबहुअं पदेसविरहिय अप्पाबहुए परूविदं ति ह वुच्चदे ।
भागहारपमाणाणुगमे भण्णमाणे पढमसमए संचिवस्स भागहारो वुच्चदे- एगसमयपबद्धमसंखेज्जेहि लोगेहि खंडिदूण तत्थ एगखंडमेत्तं पढमसमयसंचिददव्वं होदि । अतिशीघ्र पर्याप्तियोंको समाप्त करके और परिणामयोगको प्राप्त होकर सूत्रमें कही गई विधिसे आकर जो अन्तिम समय में स्थित होता है वह उत्कृष्ट द्रव्यका स्वामी होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । सूत्र में द्वितीय · तस्स ' पदका निर्देश निष्फल नहीं है, क्योंकि, उस चरम समयवर्ती तद्भवस्थ जीवके जो औदारिकशरीर होता है उसके उत्कृष्ट प्रदेशाग्र होता है ऐसा सम्बन्ध करने पर उसकी सफलता उपलब्ध होती है।
यहाँ पर सञ्चयानुगम, भागहारप्रमाणानुगम और समयप्रबद्धप्रमाणानुगम इन तीन अनुयोगद्वारोंका आश्रय लेकर उपसंहारका कथन करते हैं। उनमें से संचयानुगमके प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व ये तीन अनुयोगद्वार है । प्ररूपणाका कथन करने पर तीन पल्यप्रमाण कालके प्रथम समय में संचित हुआ द्रव्य स्वामित्वके अन्तिम समयमें है। द्वितीय समयमें संचित हुआ द्रव्य भी है। इस प्रकार तीन पल्यके अन्तिम समयमें संचित हुए द्रव्य के प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए। प्ररूपणा समाप्त हुई। तीन पल्यके प्रथम समयमें संचित द्रव्य कितना है ऐसा पूछने पर एक समयप्रबद्धके अन्तिम गोपुच्छ प्रमाण है। जो दूसरे समयमें संचित द्रव्य है वह स्वामित्व समय में चरम और द्विचरम गोपुच्छप्रमाण है। जो तिसरे समयमें संचित द्रव्य हैं वह स्वामित्व समय में चरम, द्विचरम और त्रिचरम गोपुच्छप्रमाण है । इस प्रकार जाकर कर्मस्थितिके अन्तिम समयमें संचित हुआ द्रव्य एक समयप्रबद्धप्रमाण है । प्रमाण समाप्त हुआ। अल्पबहुत्वका कथन प्रदेशविरहित अल्पबहुत्वके समय कर आये हैं, इसलिए यहाँ नहीं करते ।
भागहारप्रमाणानुगमका कथन करने पर प्रथम समयमें संचित हुए द्रव्यका भागहार कहते हैं-- एक समयप्रबद्ध में असंख्यात लोकका भाग देकर वहाँ जो एक भागप्रमाण द्रव्य
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