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५, ६, ४२९ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदमीमांसा
( ४०९ जाव तिण्णं पलिदोवमाणं पढमसमयो त्ति । एत्थ संदिट्ठी
.. . शशश११११२१ १ १
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एत्थ एगगणहाणिअद्धाणमेत्तमोदरिदूण बद्धपदेसग्गसंचयस्स भागहारो गुणहाणिमेत्तो गुण हाणिअखाणं पुण एत्थ संखेज्जावलियाओ तेणेदम्हि समकरणं कादूण मेलाविदे असंखेज्जा समयपबद्धा होति । तं जहा- ताव चरिमेगगुणहाणिसंचयमस्सिदण असंखेज्जाणं समयपबद्धाणमुप्पत्ति भणिस्सामो- चरिमगुणहाणिपढमसमयसंचयस्स भागहारो एगगणहाणी । तस्स पमाणमेदं १ ।। उवरिमसमयसंचिददव्वं जदि वि विसेसाहिय तो वि जाव चरिमगणहाणीए अद्धमवरि गच्छदि ताव समयं पडि संचिददव्वं चरिमगणहाणिपढमसमयसंचएण सरिसं ति गहिदे एत्यंतरे जादसव्वसंचयसमूहो एगसमयपबद्धस्स अद्धं होदि । पुणो तदो उवरि एगगुणहाणीए चदुब्भागमेत्तअदाणस्स सव्वसंचयसमहो वि एगसमयसमूहो वि एगसमयपबध्दस्स अध्दं होविएवमेगगणहाणिअट्टमभाग-सोलसभाग-बत्तीसभाग-चउस ट्ठिभागादि उवरिमकर तीन पल्योंके प्रथम समय तक ले जाना चाहिए । यहाँ सदृष्टि- १, १, १ .
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२९. . . . . . यहाँ पर एक गुण
हानिअध्वानमात्र उतरकर बंधे हुए प्रदेशाग्रके संचयका भागहार गुणहानिप्रमाण होता है। परंतु यहाँ पर गुणहानिअध्वान संख्यातआवलिप्रमाण है । इसलिए इसका समीकरण करके मिलानेपर असंख्यात समयप्रबद्ध होते हैं। यथा- पहले अन्तिम एक गुणहानिके संचयका अवलम्बन लेकर असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उत्पत्तिका कथन करेंगे- अन्तिम गुणहानिके प्रथम समयम संचित हुए द्रव्यका भागहार एक गुणहानि है। उसका प्रमाण यह है । उपरिम समयमें संचित हुआ द्रव्य यद्यपि विशेष अधिक होता है तो भी जब तक अन्तिम गुणहानिका अर्धभागप्रमाण ऊपर जाता है तब तक प्रत्येक समयमै संचित हआ द्रव्य अन्तिम गणहानिके प्रथम समयमें संचित हुए द्रव्य के समान है, इसलिए उसका ग्रहण करने पर इतने कालके मध्य में जो सम्पूर्ण संचय होता है वह एक समयप्रबद्धका अर्धभागप्रमाण होता है । पुनः उसके ऊपर एक गुणहानिके चतुर्थ भागमात्र अध्वानका सब संचय समूह भी तथा एक समयका समूह भी एक ममयप्रबद्ध का अर्धभागप्रमाण होता है । इस प्रकार एक गुणहानिके आठवें भाग, सोलहवें भाग,
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