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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, ४२९
असंखेज्जलोगाणमद्धेण किचणेण एगसमयपबद्धे खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्तं बिदियसमयसंचिददव्वं होदि । पढमभागहारस्स तिभागेण किंचणेण एगसमयपबद्ध खंडिदे तदियसमयसंचिदवव्वं होदि । एवं गंतूण कम्मट्टि चरिमसमए जं बद्धं कम्मं तस्स एगरूवं भागहारो होदि । तिण्णं पलिदोवमाणं पढमसमए संचिददध्वं चरिमणिसेगमेत्तं होदु णाम बिदियसमयसंचिददध्वं पुण चरिम.दुचरिणिसेयमेतं ण होदि,तिण्णं पलिदो. वमाणमुवरि णिसेयर चणाभावादो। एवमवरिमसमयपबद्धसंचिददन्वेसु वि एगादिएगत्तरकमेण णिसेगा ण संचिगंति त्ति परूवेदव्वं? एत्थ परिहारो वुच्चदे । तं जहातिण्णं पलिदोवमाणं पढमसमए बद्धं णोकम्मं तं तेति चेव तिष्णं पलिदोवमाणं पढमसयमादि कादण जाव चरिमसमओ त्ति ताव गोवच्छागारेण णिसिंचदि । जं बिदियसमए बद्धं णोकम्मपदेसग्गं तं बिदियसययप्पडिगोवच्छागारेण गिसिंचमागो ताव गच्छदि जाव तिग्णं पलिदोवमाणं दुचरिमसमओ त्ति । पुणो कम्मट्टिदिरिमसमए अप्पिदसमयपबद्धस्स चरिम-दुचरिमगोवच्छं च णिसिंचदि, उपरि आउट्टिदीए अभावादो । तदियसमए जं बद्धं णोकम्मपदेसगं तं तदियसमयप्पहुडि णिसिंचमाणो ताव गच्छदि जाव दुचरिसमओ ति । तदो चरिमसमए अप्पिदसमयपबद्धस्स चरिमदुचरिम-तिचरिमगोवुच्छाओ णिसिंचदि । पुणो एवं गंतूण तिण्णं पलिदोवमाणं जं
प्राप्त हो वह प्रथम समय में संचित द्रव्य है । असंख्यात लोकके कुछ कम अर्धभागका एक समयप्रबद्ध में भाग देने पर वहां जो एक भागप्रमाण द्रव्य प्राप्त हो वह द्वितीय समयमें संचित द्रव्य है। प्रथम भागहारके कुछ कम तृतीय भागका एक समयप्रबद्ध में भाग देने पर तीसरे समय में संचित द्रव्य होता है । इस प्रकार जाकर कर्म स्थितिके अन्तिम समय में जो वह बद्ध कर्म है उसका एक अंक भागहार होता है।
शंका- तीन पल्योंके प्रथम समय में संचित हुआ द्रव्य अन्तिम निषेकप्रमाण होओ, किन्तु द्वितीय समयमें संचित द्रव्य चरम और द्विचरम निषेकप्रमाण नहीं होता, क्योंकि, तीन पल्योंके जार निषेकरचना का अभाव है। इसी प्रकार उपरिम समयप्रबद्धों में संचित हुए द्रव्योंम भी एकादि एक अधिक क्रमसे निषेकोंका संचय नहीं बन सकता ऐसा यहां कथन करना चाहिए?
समाधान - यहां इस शंकाका समाधान करते हैं। यथा- तीन पल्यों के प्रथम समयमें जो बद्ध नोकर्म है उसे उन्हीं तीन पल्योंके प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समय तक गोपुच्छाकार रूपसे निक्षिप्त करता है । जो दूसरे समय में बद्ध नोकर्मप्रदेशाग्र है उसे दूसरे समयसे लेकर गोपुच्छाकर रूपसे निक्षिप्त करता हुआ जब तक जाता है जब तक तीन पल्योंका द्विचरम समय है। पुनः नोकर्मस्थितिके अन्तिम समय में विवक्षित समयप्रबद्धके चरम द्विचरम गोपुच्छको निक्षिप्त करता है, क्योंकि, ऊपर आयुस्थितिका अभाव है । तीसरे समय में बद्ध जो नोकर्मप्रदेशाग्र है उसे तीसरे समयसे लेकर निक्षिप्त करता हुआ तब तक जाता है जब तक द्विचरम समय प्राप्त होता है । अनन्तर अन्तिम समय में विवक्षित समयप्रबद्धके चरम, द्विचरम और विचरम गोपुच्छोंको निक्षिप्त करता है । पुनः इस प्रकार जाकर तीन पल्योंके द्वि चरम समयमें जो बद्ध
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