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५, ६, ४१५ )
बंधणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ
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जहष्णुक्कस्सपदेण ओरालिय-वेउविय-आहारसरीरस्स जहण्णओ गुणगारो सेडीए असंखेज्जविभागो ॥४१२॥
उक्कस्सओ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥४१३।।
तेजा-कम्मइयसरीरस्स जहण्णओ गुणगारो अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो ॥४१४॥
तस्सेव उक्कस्सओ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥४१५।।
एदेहि चदुहि वि सुत्तेहि जहण्णुक्कस्सपदप्पाबहुअस्त गुणगाराणं परूवणा कदा । तं जहा-सम्वत्थोवमोरालियसरीरस्स जहण्मयं पदेसरगं, सुहुमेइवियअपज्जत्त जहण्णउववादजोगेण आगदएगसमयपबद्धत्तादो । तस्सेव उक्कस्सयं पदेसम्गमसंखेज्ज. गणं । को गण. ? पलिदो० असंखे० भागो । कुदो ? तिपलिदोवमाउमणुस्सचरिमसमयउक्कस्सदव्वग्गहणादो। वेउविवयसरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गमसंखेज्जगुणं । को गण ? सेडीए असंखे० भागो । कुदो? असण्णिपच्छायदेण देवेण रइएण वा जहण्णउववादजोगेण संचिदएगसमयपबद्धपमाणत्तादो । कथं जहणजोगिस्स दव्वं
जघन्य उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरका जघन्य गुणकार जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है ॥४१२।।
तथा उत्कृष्ट गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ४१३॥
तेजसशरीर और कार्मणशरीरका जघन्य गणकार अभव्योंसे अनन्तगणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण है ।।४१४॥
तथा उन्हीं का उत्कृष्ट गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है ॥४१५॥
इन चारों ही सूत्रोंके द्वारा जघन्यपद और उत्कृष्टपदकी अपेक्षा अल्पबहत्वके गणकारोंकी प्ररूपणा की है। यथा-औदारिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है; क्योंकि, वह सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तके जघन्य उपपाद योगके द्वारा ग्रहण किये गए एक समयप्रबद्धप्रमाण है। उससे उसीका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, तीन पल्य की आयुवाले मनुष्योंके अन्तिम समययें जो उत्कृष्ट द्रव्य होता है उसका यहाँ ग्रहण किया है। उससे वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगणा है । गुणकार क्या है ? जगधेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि, वह असंज्ञी जीवोंमेंसे आकर उत्पन्न हुए देव या नारकीके द्वारा जघन्य उपपादयोगसे संचित हुए एक समयप्रबद्धप्रमाण होता है।
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