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५, ६, ४१७ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदमीमांसा ( ३९७ गुण ? पलिदो० असंखे० भागो । कुदो सतमाए पुढवीए चरिमसमयणेरइयस्स गुणिदकम्मंसियस्स उक्कस्स तेजावग्वगहणादो । कम्मइयसरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गमणंतगणं । को गुण ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो। कुदो ? खविवकम्मंसियलक्खणेणागदचरिमसमयअजोगिदव्वग्गहणादो । तस्सेव उक्कस्सदव्वमसंखे० गुणं । को गुण ? पलिदो० असंखे०भागो। कुदो गणिदकम्मसियलक्खणेणागवसत्तमपुढविचरिमसमयणेरइयवध्वग्गहणादो।
एवं गणगारो त्ति समत्तमणुओगद्दारं । पवमीमांसाए तत्थ इमाणि दुवे अणुयोगद्दाराणि--जहण्णपदे उक्कस्सपदे ॥४१६॥
जत्थ पंचणं सरीराणं जहण्णवव्वपरिक्खा कीरदि सा जहण्णपदमीमांसा । जत्थ उक्कस्सदव्वपरिक्खा कोरदि सा उक्कस्सपदमीमांस।।
उक्कस्सपदेण ओरालियसरीरस्स उक्कस्सयं पदेसग्गं कस्स ॥४१७॥
उससे उसीका उत्कृष्ट द्रव्य असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, सातवीं पृथिवीमें अन्तिम समयवर्ती नारकीके गुणितकर्माशिकविधिसे जो तैजसशरीरका उत्कृष्ट द्रव्य होता है उसका यहाँ पर ग्रहण किया है । उससे कार्मणशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, क्षपितकर्माशिकलक्षणसे आए हुए अन्तिम समयवर्ती अयोगिकेवलीके जो द्रव्य होता है उसका यहाँ पर ग्रहण किया है। उससे उसीका उत्कृष्ट द्रव्य असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, गुणितकौशिकलक्षणसे आये हुए सातवीं पृथिवीके अन्तिम समयवर्ती नारकीका जो द्रव्य है उसका यहाँ पर ग्रहण किया है।
इस प्रकार गुणकार अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। पवमीमांसाका प्रकरण है । उसमें ये दो अनुयोगद्वार होते हैं-जघन्यपद और उत्कृष्टपद ।।४१६॥
जहाँ पाँचों शरीरोंके जघन्य द्रव्यकी परीक्षा की जाती है वह जघन्य पदमीमांसा है और जहाँपर उत्कृष्ट द्रव्यकी परीक्षा की जाती है वह उत्कृष्ट पदमीमांसा है।
उत्कृष्टपदकी अपेक्षा औदारिक शरीरके उत्कृष्ट प्रदेशाग्रका स्वामी कौन है ।।४१७॥
ता. प्रतो' -कम्मंसियउक्कस्स-' इति पाठ11 Jain Education International
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