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छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
( ५, ६, ४१५
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सेडीए असंखे० भागगुणं होज्ज ? ण, जादिविसेसेण वेउब्वियजहण्ण समयपबद्धस्स सेडीए असंखेज्जदिभागगुणलं पडि विरोहाभावादो । तस्सेव उक्कस्सदव्वमसंखेज्जगुणं । को गुण० ? पलिदोवमासंखे ० भागो । कुदो ? गणिदकम् मंसियलक्खणेणागवआरणच्चदकप्पवासियदेवस्स चरिमसमयसंचयग्गहणादो । आहारसरीरस्स जहयं पवेसग्गमसंखे० गुणं । को गुण ० ? को गुण ० ? सेडीए असंखे ० भागो । कुदो ? उत्तरसरीरमुट्ठावेंतपढमसमयसाहुस्स जहण्णजोगेणागदएगसमयपबद्धग्गहणादो। एत्थ जादिविसेसेणेव गुणगारो सेडीए असंखे ० भागो होदि त्ति घेत्तव्वो । तस्सेव उक्कस्यं पदेसग्गमसंखेज्जगुणं । को गुण० ? पलिदो० असंखे० भागो । कुदो ? उत्तरसरीरं विविधण मूलसरीरं पविसमाणचरिमसमय आहारसाहुस्स उक्कस्ससंचयग्गहणादो । तेजइयसरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गमणंतगुणं । को गुण ० * ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमणंत भागो । कुदो ? सुहुमेइंदियअपज्जत्तजहणएगंताणुव डिजोगकालस्स चरिमसमयतेजइयदव्वग्गहणादो । पुविल्लाणं गुणगारो सेडीए असंखे ० भागो । एदस्स गुणगारो कथमणंतो होज्ज ? साभावियादो । तस्सेव उक्कस्तदव्वमसंखेज्जगुणं । को
शंका-- जघन्य योगवालेका द्रव्य जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणा कैसे होता है ? समाघान -- नहीं, क्योंकि, जातिविशेषके कारण वैक्रियिकशरीरके जघन्य समयप्रबद्ध के जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाणगुणे होने में कोई विरोध नहीं है ।
उससे उसीका उत्कृष्ट द्रव्य असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, गुणितकर्माशिकलक्षण से आए हुए आरण- अच्युत कल्पवासी देवके अन्तिम समय में जो संचय होता है उसका यहाँ ग्रहण किया है। उससे आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, उत्तरशरीरको उत्पन्न करनेवाले साधुके जघन्य योगसे जो एक समयप्रबद्ध प्राप्त होता है उसका यहाँ पर ग्रहण किया है । यहाँ पर भी जातिविशेष के ही कारण गुणकार जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। उससे उसीका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है | गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, उत्तरशरीरकी विक्रिया करके मूल शरीरमें प्रवेश करनेवाले अन्तिम समयवर्ती आहारकशरीरी साधुके जो उत्कृष्ट संचय होता है उसका यहाँ ग्रहण किया है। उससे तैजसशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र अनन्तगुणा गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवके जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग - कालके अन्तिम समयमें जो तैजसशरीरका द्रव्य होता है उसका यहां ग्रहण किया है । शंका- पहले के शरीरोंका गुणकार जगश्रणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । ऐसी अवस्था में इस शरीरका गुगकार अनन्त कैसे हो सकता है ?
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समाधान - ऐसा स्वभाव है ।
* अ० प्रो' जहण्णजोगिस्स दव्वं सेडीए असंखे० मागगुणत्तं पडि इति पाठ: 1 ता० प्रतो पदेसग्गमसंखे० गुणं ( मणंतगुणं ) को गुण० ' इति पाठ 1
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