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छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
( ५, ६, ४१८
कि देवस्स किं णेरइयस्स किं तिरिक्खस्स कि मणुस्सस्स कि पज्जत्तस्स किमपज्जत्तस्स कि सणिस्स किमसणिस्स किमेइंदियस्स इच्चादिपुच्छाओ एत्थ कायव्वाओ ।
अण्णदरस्स
उत्तरकुरु-देवकुरुमणुअस्स
तिपलिदोवम
ट्ठिदियस्स ।। ४१८ ॥
इत्थि पुरिस वेदेदिसम्मत्त-मिच्छत्तादिगुणेहि य वव्वविसेसो णत्थि त्ति जाणावणट्ठमदरणिद्देसो कदो । सेसगइप डिसेहट्ठ सेसमणुस्सप डिसेहट्ठ च उत्तरकुरु देवकुरुमस्सग्गहणं कदं । किमदुमणास पडिसेहो कदो ? अण्णत्थ बहुसादाभावादो । असादेण ओरालियसरीरपोग्गलस्स बहुअस्स अपचयदंसणादो । उत्तरकुरु देवकुरुमणुआ सव्वे तिपलिदोवमट्ठिदिया चेव तदो तिपलिदोवमट्ठिदियस्से त्ति विसेसणमजुत्तं ? ण एस दोसो, उत्तरकुरु- वेवकुरुमणुआ तिपलिदोवर्माट्ठदिया चेवे त्ति तत्थ सेसाउट्ठिदिवि - पडसे फलत्तादो। ण च एदं सुत्तं मोत्तूण अण्णं सुत्तमत्थि जेण उत्तरकुरु देवकुरुमणुआ तिपलिदोवमट्ठिदिया चेव होंति त्ति णव्वदि तदो सफलमेदं विसेसणं । समग्राहिय दुपलिदोवमे आदि कादूण जाव समऊणतिष्णिपलिदोवमाणि त्ति द्विदिवियप्पपडिसेहट्ठ
क्या देव है, क्या नारकी है, क्या तियंञ्च है या क्या मनुष्य है; क्या पर्याप्त है या क्या अपर्याप्त है; क्या संज्ञी है या क्या असंज्ञी हैं; तथा क्या एकेन्द्रिय है आदि पृच्छाय यहाँ पर करनी चाहिए ।
जो तीन पल्की आयुवाला उत्तरकुरु और देवकुरुका अन्यतर मनुष्य है । ४१८० स्त्रीवेद और पुरुषवेदके कारण तथा सम्यक्त्व और मिथ्यात्व आदि गुणों के कारण द्रव्य विशेष नहीं होता है इस बातका ज्ञान कराने के लिए अन्यतरपदका निर्देश किया है । शेष गतियों का निषेध करनेके लिए तथा शेष मनुष्यों का निषेध करने के लिए उत्तरकुरु और देवकुरुके मनुष्यों के इस पदका ग्रहण किया है ।
शका -- अन्यके उत्कृष्ट स्वामित्वका किसलिए निषेध किया है ?
समाधान- क्योंकि, अन्यत्र बहुत साताका अभाव है, क्योंकि, असातासे औदारिकशरीरके बहुत पुद्गलका अपचय देखा जाता है । शंका -- उत्तरकुरु और देवकुरुके सब मनुष्य तीन पल्यकी स्थितिवाले ही होते हैं। इसलिए 'तीन पल्यकी स्थितिवाले के' यह विशेषण युक्त नहीं है ?
समाधान -- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, उत्तरकुरु और देवकुरुके मनुष्य तीन पल्यकी स्थितिवाले ही होते हैं ऐसा कहने का फल वहाँपर शेष आयुस्थिति के विकल्पोंका निषेध करता है । और इस सूत्र को छोडकर अन्य सूत्र नहीं है जिससे यह ज्ञान हो कि उत्तरकुरु और देवकुरुके मनुष्य तीन पल्की स्थितिवाले ही होते है, अतः यह विशेषण सफल है । अथवा एक समय अधिक दो पल्यसे लेकर एक समय कम तीन पल्य तकके स्थितिविकल्पोंका निषेध करने के लिए
-दुरलिद व मआदि
ता० प्रतो ' Jain Education International
इति पाठ 1
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