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३८४ )
छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
अचरिमाए विदीए पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३७६ ॥
के० विसेसो ? चरिमणिसे गेणूणच रिमगुणहाणिदव्वमेत्तो ६२९१ ।
सव्वासु विसेसाहियं ॥ ३७७ ॥
ट्ठिदीसु सव्वेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पवेसग्गं
केत्तियमेत्तो विसेसो ? चरिमणिसेगमेत्तो ६३०० ।
( ५, ६, ३७६
एवं तिष्णं सरीराणं ॥ ३७८ ॥
जहा ओरालियस रीरस्स जहष्णुक्कस्सपदप्पाबहुअं परूविदं तहा वेउव्विय-तेजाकम्इयसरीराणं पि परूवेदव्वं । गवरि चरिमगुणहाणिदव्वादो तेजइयसरीरस्स पढमद्विदीए णिसित्तवव्वमसंखेज्जगुणं ति भणिदे एत्थ गुणगारो अंगुलस्स असंखे० भागो होदि, दिवडूगुणहाणिमेत्तचरिमणिसेगेहि अण्णोष्णन्भत्थरासिमेत्त चरिमणिसेगेसु ओट्टिदे अंगलस्स असंखे ० भागमेत्तगुणगारुवलंभादो । एत्थ एत्तियमागच्छदित्ति कुदो नव्वदे ? एत्थेव उवरि भण्णमाणअप्पाबहुगादो णव्वदे । तं जहा - सव्वत्थोवाणि आहारसरीरस्स णाणापदेस गुणहाणिद्वाणंतराणि । कम्मइयसरीरस्स णाणापदेस
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उससे अचरम स्थितिमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ||३७६ ||
विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम गुणहानिके द्रव्यमेंसे अन्तिम निषेकके द्रव्यको कम कर देने पर जो शेष रहे उतना है ( १०० - ९ = ९१; ६२०० +९१ = '६१९१ । उससे सब स्थितियों और सब गुणहानिस्थानान्तरों में प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ॥ ३७७ ॥
विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम निषेकका जितना प्रमाण है उतना है ( ६२९१ + ९ = ) ६३०० ।
इसीप्रकार तीन शरीरोंकी अपेक्षा जानना चाहिए ॥ ३७८ ॥
जिस प्रकार औदारिकशरीरका जघन्य उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा है उसी प्रकार वैक्रियिकशरीर, तेजसशरीर और कार्मणशरीरका भी कहना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अन्तिम गुणहानि द्रव्यसे तैजसशरीरकी प्रथम स्थितिमें निक्षिप्त हुआ द्रव्य असंख्यातगुणा है ऐसा कहने पर यहाँ पर गुणकार अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है, क्योंकि, डेढ़ गुणहानिप्रमाण अन्तिम निषेकोंसे अन्योन्याभ्यस्त राशिप्रमाण अन्तिम निषेकोंके भाजित करने पर अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार उपलब्ध होता है ।
शंका-- यहाँ इतना आता है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-यहीं पर आगे कहे जानेवाले अल्पबहुत्वसे जाना जाता है । यथा-आहारकशरीरके नानागुणहानिस्थानान्तर सबसे स्तोक हैं। उनसे कार्मणशरीरके नानागुणहानिस्थानान्तर
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