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५, ६, ३७९ )
बंधणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ
( ३८५
गुणहाणिट्टाणंतराणि असंखेज्जगणागि। तेजासरीरस्त णाणापदेसगुणहाणिढाणंतराणि असंखे० गुणाणि । संपहि कम्मइयसरीरस्स णाणागुणहाणिसलागाओ पलिदोवमच्छेदणरहितो असंखे० भागेणणाओ त्ति आइरिया भणंति । पुणो एवं विहकम्मइयसरीरगाणागुणहाणिसलागाहितो तेजइयसरीरस्स णाणागुणहाणिसलागाओ असंखेज्जगणाओ त्ति वग्गणासुत्ते भणिदं । अविरुद्धाइरियाणं उवदेसो पुण पलिदोवमच्छेदणाहितो तेजइयसरीरस्स णाणागणहाणिसलागाओ असंखेज्जगुणाओ। को गण० ? पलिदो ० असंखे०भागो त्ति । एदम्हि गुणगारे जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाणं पलिदोवमाणमण्णोण्णब्भासे कदे तेजइयणाणागुणहाणिसलागाणमण्णोण्णब्भत्थरासी उप्पज्जदि । पुणो तम्मि अण्णोण्णभत्थरासिम्मि दिवगणहाणीए ओट्टिदे लद्धमसंखेज्जाणं पलिदोवमाणमण्णोण्णमासो आगच्छदि । तेण गणगारो अंगलस्स असंखे०भागो त्ति सिद्धं । कम्मइयसरीरगुणगारो पुण पलिदोवमस्स असंखे०भागो त्ति बटुवो। एसो गणगारविही पुव्वं परूविवजहण्णपदे उक्कस्सपदे च वत्तव्यो ।
जहण्णुक्कस्सपदेण सम्वत्थोवं आहारसरीरस्स चरिमाए ट्ठिदीए पदेसग्गं ॥ ३७९ ॥
कुदो ? उक्कस्सद्विदिपरमाणणं बहुआणं संभवाभावादो।
असंख्यातगुणे हैं। उनसे तैजसशरीरके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणे हैं। यहाँ पर कार्मणशरीरकी नानागुणहानिशलाकायें पल्य के अर्धच्छेदोंसे असंख्यातवें भागप्रमाण कम हैं ऐसा आचार्य कथन करते हैं। पुनः इस प्रकारकी कार्मणशरीरकी नानागुणहानिशलाकाओंसे तेजसशरीरकी नानागुणहानिशलाकायें असंख्यातगुणी है ऐसा वर्गणासूत्रमें कहा है । परन्तु विरोधरहित आचार्योंका उपदेश है कि पल्यके अर्धच्छेदोंसे तैजसशरीरकी नानागुणहानिशलाकायें असंख्यातगुणी हैं। गुणकार क्या है ? पल्यका असंख्यातवां भागप्रमाण गुणकार है। इस गुणकारमें जितनी संख्या है उतने पल्योंका परस्पर गुणा करने पर तैजसशरीरकी नानागुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि उत्पन्न होती है । पुनः उस अन्योन्याभ्यस्त राशिम डेढ गुणहानिका भाग देने पर असंख्यात पल्योंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि आती है । इसलिए गुणकार अङगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण है यह सिद्ध होता है। परन्तु कार्मणशरीरका गुणकार पल्यका असंख्यातवां भागप्रमाण है ऐसा जानना चाहिए। यह गुणकारविधि पहले कहे गये जघन्यपद और उत्कृष्टपदमें भी कहनी चाहिए ।
जघन्य- उत्कृष्ट पदको अपेक्षा आहारकशरीरको अन्तिम स्थितिमें प्रदेशान सबसे स्तोक है ।। ३७९ ।।
क्योंकि, उत्कृष्ट स्थितिके बहुत परमाणु सम्भव नहीं हैं।
४ ता० प्रती 'पुवपरूविदजहण्णपदे ' अ० प्रको 'पुव्वं परूविदं जहण्णपदे' इति पाठ ।
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