________________
५, ६, ३९० )
घाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए णिसेय अप्पाबहुअं
( १८७
अपढम अचरिमासु ट्ठिदीस पवेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३८६ ॥ के० विसेसो ? पढम चरिमणिसेगेहि ऊणचरिमगुणहाणिदव्वमेत्तो । अपढमासु ट्ठिदीसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३८७ ॥
के० विसेसो ? चरिमणिसेगमेत्तो |
अचरिमासु ट्ठिदीसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३८८ ॥
के० विसेसो ? चरिमणिसेगेणूणपढमणिसेगमेत्तो ।
सव्वासु ट्ठिवीसु सव्वेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३८९ ॥
केत्तियमेत्तो विसेसो ? चरिमणिसेयमेत्तो ।
एवं पदेसविरओ त्ति समत्तमणुयोगद्दारं ।
जिसे अप्पा बहुए ति तत्थ इमाणि तिष्णि अणुयोगद्दाराणिजहण उक्तपदे जहण्णुक्कस्सपदे ॥ ३९०॥
उससे अप्रथम- अचरम स्थितियोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है || ३८६ ॥ विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम गुणहानिके द्रव्यमेंसे प्रथम और अन्तिम निषेकके द्रव्यको कम करनेपर जो शेष रहे उतना है ।
उससे अप्रथम स्थितियों में प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ।। ३८७ ॥
विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम निषेकका जो प्रमाण है उतना है ।
उससे अचरम स्थितियोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है || ३८८ ॥
विशेषका प्रमाण कितना है ? प्रथम निषेकके प्रमाणमेंसे अन्तिम निषेकके प्रमाणको कम करनेपर जो शेष रहे उतना है ।
उससे सब स्थितियों और सब गुणहानिस्थानान्तर में प्रदेशाग्र विशेष अधिक है ।। ३८९ ॥
विशेषक प्रमाण कितना है ? अन्तिम निषेकका जितना प्रमाण है उतना है । इस प्रकार प्रदेशविरच अनुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
निषेक अल्पबहुत्वका प्रकरण है । उसमें ये तीन अनुयोगद्वार होते हैंजघन्यपद, उत्कृष्टपद और जघन्य उत्कृष्टपद ॥ ३९०॥
अ० प्रतो ' पदेसग्गं विसेसग्गं विसेसा ० इति पाठ: ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org