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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
को गुण ० ? संखेज्जा समया ।
एवं णिसेयपरूवणा समत्ता |
गुणगारेति तत्थ इमाणि तिणि अणुयोगद्दाराणि जहण्णपद उक्कस्सपदे जहष्णुक्कस्सपदे ।। ४०७ ।।
( ५, ६, ४०७
जहणदव्वमस्सिदूण जो गुणगारो तं जहण्णपदं णाम । उक्कस्सदव्वमस्सिदूण जो गुणगारो तमुक्कस्सपदं णाम । उभयमस्तिऊण जो गुणगारो तं जहण्णुक्कस्सपदं
णाम ।
जहण्णपदे सव्वत्थोवा ओरालिय-वेउब्विय- आहारसरीरस्स जहण्णओ गुणगारो सेडीए असंखेज्जदिभागो ।। ४०८ ।।
कुदो ? सामावियादो । जहण्णपदप्पाबहुए कीरमाणे सेडीए असंखे० भागो गुणगारो होदित्ति भणिदं होदि । तं जहा- सन्वत्थोवमोरालिय सरीरस्स जहण्णयं पदेसग्गं । तं पुण एगसमयपबद्धमेत्तं सुहुमेइंदिय अपज्जत्तएण पढमसमयतमवत्थेण जहण्ण उववादजोगेण अपज्जत्तिवित्तणणिमित्तं गहिदणोकम्पपवेसग्गं । वेउब्वियसरीरस्स जहरणयं पदेसग्गमसंखे० गुणं । को गुण० ? सेडीए असंखे० भागो । एदं पि एगसमयपबद्धमेत्तं असणिपच्छायददेव णेरइएसु उप्पण्णेण पढमसमयआहारएण
गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । इस प्रकार निषेकप्ररूपणा समाप्त हुई ।
गुणकारका प्रकरण है । उसमें ये तीन अनुयोगद्वार होते हैं- जघन्यपद, उत्कृष्टपद और जघन्य उत्कृष्टपद ॥ ४०७॥
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जघन्य द्रव्यका आश्रय कर जो गुणकार है वह जघन्यपद कहलाता है । उत्कृष्टपदका आश्रय कर जो गुणकार है वह उत्कृष्टपद कहलाता है और दोनोंका आश्रय कर जो गुणकार है वह जघन्य - उत्कृष्टपद कहलाता है ।
जघन्य पदकी अपेक्षा औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरका जघन्य गुणकार जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है ||४०८ ||
क्योंकि, ऐसा स्वभाव है । जघन्य पदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व करने पर जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । यथा - औदारिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्न सबसे स्तोक है । परन्तु वह प्रथम समय में तद्भवस्थ हुए सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवके द्वारा जघन्य उपपादयोगसे अपर्याप्तिकी रचना के लिए ग्रहण किया गया नोकर्मप्रदेश ग्र एक समयप्रबद्धमात्र होता है । उससे वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । यह भी प्रथम समय में आहारक हुए तथा प्रथम समय में तद्भवस्थ हुए ऐसे असंज्ञियों में से आकर देव और नारकियों में
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